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मैं कुछ होना चाहता हूं
एक भाई ने कहा-मैं इसे कष्ट नहीं मानता। जागना कष्ट नहीं है, आनन्द है। मैं सात बजे उठता था। अब चार बजे उठता हूं। तीन घंटा अधिक जागता हूं। जागने का लाभ प्रत्यक्ष है।
शिविर में प्रतिदिन चार बार एक-एक घंटा का ध्यान कराया जाता है। यह बहुत अधिक है। शरीर इतना अभ्यस्त नहीं है कि इसको सहन कर सके। प्रारम्भ में कम होना चाहिए।
मैंने कहा-न हो तो और अच्छा है। जरूरत ही क्या है? इससे अच्छा है नहीं होना। हम उतना ही करवाते हैं, जितना आवश्यक लगता है। यदि इतना न हो तो यथेष्ट परिणाम नहीं आ सकते। इतना नहीं किया जाता तो फिर न करना ही अच्छा है।
उसने कहा-आसन किए जाते हैं। शरीर दुखने लगता है। कमर में दर्द हो जाता है। पैर दुखने लगते हैं। मांसपेशियों में दर्द उभर आता है। तो क्या आसन करना शरीर को सताना नहीं है? मैं बोला-आसन में दर्द नहीं होता। आसन से विकृति के साथ छोड़छाड़ होती है। स्नायुओं को वैसा अभ्यास नहीं है। अभ्यास करने का अर्थ है, उनसे छेड़छाड़ करना। छेडछाड प्रतिक्रिया पैदा करता है। कोई छेड़छाड़ करे, और सामने वाला प्रतिक्रिया न करे तो फिर शरीर वीतराग हो जाएगा। तुम छेड़छाड़ करो और शरीर प्रतिक्रिया न करे, यह कैसे सम्भव हो सकता है? रोग है। दवा मत लो। कोई प्रतिक्रिया नहीं होगी। रोग पड़ा रहेगा। जैसे ही रोग के साथ छेड़छाड़ की, वहां रिएक्शन होगा। प्रतिक्रिया होगी। भयंकर प्रतिक्रियाएं होती हैं। इसे शरीर को सताना माना जाता है। स्थूल दृष्टि से यह सही लगता है। आदमी हमेशा स्थूल को ही पकड़ता है। गहराई तक वह नहीं जाता।
___मालिक ने झंझलाकर अपने नौकर से कहा तुम बड़े गधे हो। नौकर ने हाथ जोड़कर कहा-मालिक! बड़े तो आप हैं, मैं तो छोटा हूं।
नौकर बात को पकड़ नहीं सका। स्थूल बुद्धि वाला स्थूल बात को पकड़ सकता है। वह गहराई तक नहीं जा सकता। वह यह समझ ही नहीं पाता है कि क्या कहा जा रहा है और मैं क्या कह रहा हूं। हमेशा यही स्थिति बनती है।।
___ मैंने आगे कहा-मित्र! गहराई में पैठने का प्रयास करो। तुम कहते हो, शरीर सताया जा रहा है। इस भाषा को बदल दो। अर्थ को समझो, भाषा बदल जाएगी। शरीर सताया नहीं जा रहा है, साधा जा रहा है। शरीर को सताना एक बात है और शरीर को साधना दूसरी बात है। यह सताना नहीं है, शुद्धिकरण है। यह कायाशुद्धि है, शरीर की शुद्धि है। जब तक शरीर की शुद्धि नहीं होगी, शरीर
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