Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 55
________________ ४८ मैं कुछ होना चाहता हूं करनी पड़े तो कई दिनों तक विरेचन देना पड़े, तब पेट की सफाई हो सकती है, जमे हए मैल निकल जाते हैं। फेफड़े, पेट, नाड़ी-संस्थान साफ भी हो जाएं, अवरोध मिट जाएं तो भी साधक की दृष्टि से इतना पर्याप्त नहीं है। साधक को और अधिक सफाई करनी होगी। चिकित्सा की दृष्टि में मल साफ हो गया, शरीर स्वस्थ हो गया, किन्तु एक साधक उससे आगे की बात सोचता है। वह शरीरावरोधक मल को ही साफ नहीं करता, चेतना के क्षेत्र में अवरोध उत्पन्न करने वाले मलों को भी साफ करता है। उन मलों की सफाई के लिए भारी मात्रा में विरेचन अपेक्षित होता है। इस विरेचन में और शारीरिक शुद्धि के लिए प्रयुक्त विरेचन में अन्तर होता है। यह विरेचन है-आसन, प्राणायाम, व्यायाम आदि। कायशुद्धि के पांच उपाय हैं-कायोत्सर्ग, आसन, बंध, व्यायाम और प्राणायाम । ये पांचों शरीर की प्रवृत्ति से जमने वाले मलों को साफ करते हैं। किन्तु शरीर में कोरा शरीर प्रवृत्ति का ही मल नहीं जमता। उसमें मल जमता है-भावना, आसक्ति और अन्त:करण के द्वारा। संस्कारों का मल भी जमता है। आज परीक्षण किए जा चुके हैं कि विचारों के विष हमारे नाखूनों और शरीर के विभिन्न अवयवों में जमा होते हैं। वे अन्यान्य विरेचन या कायोत्सर्गादि उपायों से साफ नहीं किये जा सकते। कोई भी डॉक्टर या वैद्य भी इनकी धुलाई नहीं कर सकता। इनकी धुलाई होती है-निस्संगता के द्वारा, अनासक्ति के द्वारा और विचारों के स्नेहीकरण के द्वारा। कायशुद्धि का यह छठा उपाय है। जहां शरीर में इतनी गन्दगी भरी पड़ी है, वहां उसको शुद्ध किये बिना, शरीर को साधे बिना, क्या हमारा लक्ष्य पूरा हो सकेगा? क्या हम चैतन्य विकास की दिशा में आगे बढ़ सकेंगे? कभी संभव नहीं है। स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण उपाय है-रीढ़ का लचीला होना। जिसकी पृष्ठरज्जु लचीला नहीं होती वह न शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ होता है और न मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होता है। आज के व्यक्तियों की रीढ़ लचीली नहीं है और हो भी कैसे सकती है? बेचारी को भोजन भी नहीं मिलता। यदि पेट को पूरा भोजन नहीं मिलता है तो पेट लड़ाकू है, वह अपना सामान जुटा लेता है। जो चुप रहता है, वह उपेक्षित होता है। संभव है इसलिए लड़ाकूवृत्ति का विकास हुआ। बिना लड़े काम नहीं चलेगा। लड़ो, लड़ो और लड़ते रहो। कुछ लोगों का यह विचार ही है कि दुनिया का नियम है-संघर्ष, लड़ाई । इसीलिए सामाजिक चेतना के क्षेत्र में काम करने वाले लोगों ने कहा-संघर्ष हमारे जीवन का नियम है। अनेक समाजशास्त्रियों ने, विकासवादियों ने और द्रुतसंचारवादियों ने भी इसी का समर्थन किया। सचमुच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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