Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 46
________________ श्वास पर अनुशासन मैंने कहा, अब तो समझ गये तुम कि श्वास को देखना आत्मा को देखना है। क्या दरवाजे को मकान से अलग किया जा सकता है? कभी नहीं। यदि दरवाजा मकान नहीं है तो कमरा भी मकान नहीं है। बाहर का कमरा भी मकान नहीं है तो भीतर का कमरा भी मकान नहीं है। यदि दरवाजा और कमरे मकान नहीं हैं तो फिर मकान है क्या? उसका अस्तित्व कहां है? दरवाजे को तोड़ दो, मकान कुछ रहेगा ही नहीं। दरवाजा भी मकान है, घर का आंगन भी मकान है। कमरा भी मकान है। सबको मिलाकर देखो, मकान नजर आएगा, सबको तोड़ कर देखो, कोई मकान रहेगा ही नहीं। क्या हाथ शरीर है? नहीं मानेंगे कि हाथ शरीर है। आदमी का हाथ सड़ गया। उसको काट कर अलग कर दिया तो क्या शरीर नहीं बचा? शरीर तो बचा, फिर हाथ शरीर कैसे? फिर पैर शरीर कैसे? फिर सिर शरीर कैसे? हाथ भी शरीर नहीं, पैर भी शरीर नहीं और सिर भी शरीर नहीं। तो फिर शरीर है क्या? सब को अलग-अलग तोड़कर शरीर को नहीं देखा जा सकता। प्रत्येक अवयव जुड़ा हुआ है, वह शरीर है। टूट जाता है, फिर वह शरीर नहीं होता। हम जुड़ी हुई बात को देखें। __ श्वास आत्मा है। श्वास का दर्शन आत्मा का दर्शन है। यह आपको अजीव-सा लग सकता है, पर है यह सचाई। क्या कोई मुर्दा श्वास लेता है? कभी नहीं लेता। श्वास वही लेता है जिसमें प्राण होते हैं। प्राण उसमें होते है जिसमें चेतना होती है। चेतना उसमें होती है जिसके आत्मा है। आत्मा के बिना चेतना नहीं, चेतना के बिना प्राण नहीं और प्राण के बिना श्वास नहीं। श्वास चल रहा है। उसका संचालक कौन है? उसका संचालक है आत्मा। आत्मा के निकल जाने पर श्वास भी बन्द हो जाता है। तो क्या आत्मा के द्वारा जो संचालित है, उसे देखना आत्मा को देखना नहीं है? निश्चित ही आत्मा को देखना है। हम केवल श्वास को नहीं देखते उसके साथ चलने वाली प्राणशक्ति को भी देखते हैं। हम केवल चेतना को नहीं देखते उसके अधिष्ठान आत्मा को भी देखते हैं। इस तर्क के आधार पर कहा जा सकता है कि श्वास को देखना-आत्मा को देखना है। श्वास-दर्शन आत्मदर्शन है। इसलिए साधना के क्रम में जैसे आहारशुद्धि और इन्द्रियशुद्धि अपेक्षित है, वैसे ही श्वासशुद्धि भी बहुत आवश्यक है। जब तक श्वास की शुद्धि नहीं होती तब तक आत्म-दर्शन केवल कल्पना मात्र रह जाता है। मनोनुशासनम् में आनापान शुद्धि-श्वासशुद्धि के लिए चार बातें अपेक्षित बतलाई हैं-प्राणायाम, समतलश्वास, दीर्घश्वास और कायोत्सर्ग। जब श्वासशुद्धि होती है तब आत्म-दर्शन का मार्ग प्रशस्त होता है। पहला साधन है प्राणायाम। इसका अर्थ है-प्राण को आयाम देना। उसको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158