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मैं कुछ होना चाहता हूं दे, तो राजन! आप उसे क्या देंगे?''
"महाराज उस समय मैं उस व्यक्ति को आधा राज्य दे दंगा।"
"अच्छा राजन! आपने पानी पीया। संयोग ऐसा बना कि अत्यधिक उष्मा के कारण आपके मूत्र-निरोध हो गया। भंयकर, वेदना होने लगे। आप छटपटाने लगे। प्राण निकलने की नौबत आ गई। उस स्थिति में कोई कुशल वैद्य, एक गिलास पानी में औषधि मिलाकर दे, तो आप उसे क्या देंगे?''
___ "महाराज! प्राण बचाने वाले वैद्य को मैं अपना आधा राज्य दे दूंगा। प्राणों के सामने राज्य का मूल्य ही क्या है?''
“राजन ! अब समझ गए। आपके राज्य की कीमत है दो गिलास पानी। उसे आप बहुत कीमती कैसे बता रहे हैं? आधा राज्य तो एक गिलास पानी पीने में चला जाता है और शेष आधा राज्य एक गिलास पानी निकालने में चला जाता है, तो समूचे राज्य का मूल्य दो गिलास पानी से अधिक नहीं होता।''
प्रत्येक पदार्थ के मूल्य की यही स्थिति है। यथार्थ में पदार्थ का मूल्य बहुत कम होता है। अपेक्षा के आधार पर ही उसकी मूल्य वृद्धि होती है।
___जिस दिन सचाई की आंख खुल जाएगी. ऐसा लगेगा कि हमने इतनी बडी मर्खता की है कि देव पुरुषों को मूल्यहीन मानते रहे हैं और मुों को मूल्य देते रहे-अध्यात्म को मूल्यहीन समझते रहे और पदार्थ को मूल्यवान मानते रहे।
___ अध्यात्म की यात्रा मूल्य-प्रस्थापना से प्रारम्भ होती है, मूल्य के विवेक से प्रारम्भ होती है। जब सम्यग्दृष्टि जागती है तब मूल्यों का विवेक जागता है कि किसको कितना मूल्य देना चाहिए। आचार्य वह होता है जो इस बात का निर्णय कर सकता है कि किसको कितना मूल्य देना चाहिए। जिसमें यह विवेक नहीं होता, वह आचार्य नहीं हो सकता, यदि कोई आचार्य बन जाता है तो वह आचार्यत्व को निभा नहीं सकता।
सबसे बड़ी बात है मूल्यों का विवेक । अध्यात्म से सम्यग्दृष्टि जागती है तब व्यक्ति जिसका जितना मूल्य होता है, उसको उतना मूल्य देता है। आहार-शुद्धि और इन्द्रिय-शुद्धि का सिद्धान्त मूल्यों का सिद्धान्त है। किस आहार को कितना मूल्य दिया जाए, किस इन्द्रिय को कितना मूल्य दिया जाए, यह विवेक-जागरण पर निर्भर करता है। अध्यात्म के आचार्यों ने आहार को भी मूल्य दिया है और इन्द्रियों को भी मूल्य दिया है, किन्तु उतना ही मूल्य दिया है जितना उसका मूल्य है, अधिक मूल्य नहीं दिया। इन्द्रिय-शुद्धि का यह अर्थ नहीं कि आंखों को फोड दो-चक्षु इन्द्रिय की शुद्धि हो जाएगी। कानों के पर्दो को फाड़ दो, श्रोत्र-इन्द्रिय की शुद्धि हो जाएगी या चमड़ी को उखाड़ दो, स्पर्श-इन्द्रिय की शुद्धि हो जाएगी।
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