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इन्द्रिय अनुशासन
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مه به
س
चक्षु
पैर
हाथ
ه م
रसों का अधिक सेवन मत करो। रसों के अधिक सेवन से उन्माद बढ़ता है। जब उन्माद बढ़ता है तब कामुकता बढ़ती है। कामुक व्यक्ति पर काम-वासना वैसे ही आक्रमण कर देती है जैसे स्वादिष्ट फल वाले वृक्ष पर पक्षी आक्रमण करते हैं।
यह कथन किसी अज्ञानी का नहीं है। यह कथन उन व्यक्तियों का है जो इस सूक्ष्म नियम को जानते थे कि जीभ का और जननेन्द्रिय का निकट का संबंध है, गहरा संबंध है। इस संबंध की व्याख्या मैं तंत्रशास्त्र के द्वारा करना चाहता हूं। तंत्रशास्त्र में पांच तत्त्वों की मीमांसा है-पृथ्वी तत्त्व, जल तत्त्व, अग्नि तत्त्व, वायु तत्त्व और आकाश तत्त्व । इन पांचों तत्त्वों की पांच ज्ञानेन्द्रिय हैं और पांच कर्मेन्द्रिय हैं।
पांच तत्त्व पांच ज्ञानेन्द्रियां पांच कर्मेन्द्रिय पृथ्वी तत्त्व घ्राण
अपान जल तत्त्व जिह्वा
जननेन्द्रिय अग्नि तत्त्व वायु तत्त्व स्पर्शन आकाश तत्त्व श्रोत्र
वाक् जल तत्त्व में सारे रस समाविष्ट हो जाते हैं। जल तत्त्व की ज्ञानेन्द्रिय है जिहा और कर्मेन्द्रिय है जननेन्द्रिय । इस प्रकार जननेन्द्रिय और जिहा-दोनों जल तत्त्व से संबद्ध हैं। दोनों का गहरा संबंध है। जब जिह्वा को रस अधिक मिलेंगे तब कामुकता बढ़ेगी। जल तत्त्व दोनों को पुष्ट करता है, सिंचन देता है।
अग्नि तत्त्व की ज्ञानेन्द्रिय है चक्षु और कर्मेन्द्रिय है पैर।
क्रोध का पहला लक्षण है आंखों का लाल हो जाना। अग्नि तत्त्व के बढ़ते ही क्रोध उभरता है और आखें लाल हो जाती हैं, भृकुटि तन जाती है। क्रोध आए और आंखें लाल न हों, ऐसा नहीं होता। लाली इतनी बढ़ती है कि वह बाहर तक आ जाती है।
रामायण का एक प्रसंग है। राम ने सीता से पूछा-तुम जिस वाटिका में थी. उसके फूल कैसे थे? सीता ने कहा-सफेद। हनुमान से भी वह प्रश्न पूछा। उसने कहा-लाल। दोनों थे प्रत्यक्षदर्शी। दोनों के उत्तर एक दूसरे से विपरीत । किसको झुठलाया जाए, किसको सही माना जाए? सीता ने कहा-जो मैं कहती हूं वह शत-प्रतिशत सही है। सारे फूल सफेद थे। हनुमान बोला-मैं जो कहता हूं, वह प्रत्यक्ष दर्शन की बात है। सारे फूल लाल थे। दोनों में विवाद बढ़ा। राम ने विवाद को समेटते हुए कहा-दोनों सही हो। कैसे? उस समय सीता शान्त थी वह शांत रस
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