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में कुछ होना चाहता हूं में स्नात थीं। किसी के प्रति उसके मन में रोष नहीं था। उसकी आंखों से अमृत झर रहा था। उसको सब कुछ सफेद ही सफेद दिख रहा था। उसके लिए सारे फूल सफेद थे। हनुमान जब लंका में गया, उस वाटिका में पहुंचा, तब उसका क्रोध सीमा का अतिक्रमण कर चुका था। वह क्रोध से लाल-पीला हो रहा था। आंखों से अग्नि वरस रही थी। उस समय उसे सब कुछ लाल ही लाल दिख रहा था।
सीता और हनुमान दोनों का उत्तर सही था। वाटिका के फूल सफेद और लाल दिख रहे थे। जब क्रोध आता है तब आंखों से खून बरसने लग जाता है। केवल आंख ही लाल नहीं होती, फूल भी लाल हो जाते हैं।
सही बात यह है कि पदार्थों के रसों का संयम किए बिना कामुकता को कम नहीं किया जा सकता। रस और कामुकता परस्पर संबद्ध हैं। दोनों जल तत्त्व के द्वारा जुड़े हुए हैं। जीभ को सिंचन मिलने का तात्पर्य है जननेन्द्रिय को सिंचन मिलना। यह कभी नहीं हो सकता कि मनुष्य जिहा का पोषण करता रहे, पूरा स्वाद लेता रहे, जीभ के स्वादांकुरों को तृप्त करता रहे और जननेन्द्रिय को वश में करने की बात भी सोचता जाए। वह अपने प्रयत्न में कभी सफलता नहीं पा सकता। अपवाद की बात को हम छोड़ दें। वह सामान्य नियम नहीं हो सकता।
अध्यात्म. ने इन सूक्ष्म नियमों की खोज की। मैंने केवल एक नियम का कथन मात्र किया है। यदि हम सारे नियमों को जानने का प्रयत्न करें तो ज्ञात होगा कि अध्यात्म के आचार्यों द्वारा प्रतिपादित ये सूक्ष्म नियम भावावेश में कहे गए नियम नहीं हैं, उनका वैज्ञानिक आधार भी सुस्पष्ट है। ये सारी सचाइयां है।
मनोनुशासनम् में आहार-शुद्धि के बाद इन्द्रिय-शुद्धि की बात कही गई है। इस ग्रन्थ में उसके दो उपाय निर्दिष्ट हैं
१. स्वविषयान् प्रति सम्यग् योगः। २. प्रतिसंलीनता च।
इन्द्रिय-शुद्धि के दो उपाय हैं-(१) अपने-अपने विषयों के प्रति सम्यग् योग होना चाहिए। (२) प्रतिसलीनता होनी चाहिए। ये दोनों उपाय दो बड़े नियमों पर आधारित हैं। पांच इन्द्रियों के पांच विषय हैं। आंख का विषय है रूप, कान का विषय है स्वर, घ्राण का विषय है गंध, जीभ का विषय है रस और त्वचा का विषय है स्पर्श । ये पांच इन्द्रियां हैं और ये पांच इनके विषय हैं। प्रत्येक इन्द्रिय का अपने-अपने विषय के साथ सम्यग् योग होना चाहिए। अध्यात्म का व्यक्ति भी इन्द्रिय-विषयों का सेवन करता है। वह देखता है, सुनता है, चखता है, स्पर्श करता है, किन्तु वह इन इन्द्रियों तथा उनके विषयों को भली प्रकार से जानता है।
प्रश्न होता है कि नियम क्या है? चेतना का नियम है जानना और
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