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इच्छा और अनुशासन जाएगी, वहां निष्क्रियता व्याप जाएगी। जहां चेतना को पोषण मिलेगा, वहां जागृति होगी। जहां पोषण नहीं मिलेगा, वहां सुषुप्ति होगी। हमको केवल यही निर्णय करना है कि मैं कहां हूं? मैं शरीर के इन तीन भागों में से किस भाग में अधिक रमण करता हूं? इस बात का निर्णय होते ही 'मैं कौन हूं' का उत्तर मिल जाएगा। यदि चित्त नाभि के आस-पास घूमता है तो मान लो कि तुम इच्छा-पुरुष हो। इच्छा जागृति का केन्द्र है। सारी इच्छाएं यहां जागती हैं। यह अविरति का केन्द्र है। यह चतुर्थ गुणस्थान का केन्द्र है। यहां चतुर्थ गुणस्थान उद्घाटित होता है, प्रकट होता है। यहां इच्छाएं पैदा होती हैं। बार-बार यहां आकर चित्त अटक जाता है। चित्त के कारण यहां का केन्द्र सक्रिय हो जाता है। एक इच्छा के बाद दूसरी इच्छा जागती रहती है। इच्छाओं का प्रवाह-सा उमड़ आता है, अविरति की बाढ़ आ जाती है। एक के बाद दूसरी अविरति की तरंग उठती रहती है। यहां निर्णय हो जाता है कि 'मैं इच्छापुरुष हूं।' यहां इच्छा प्रधान होती है। इच्छाएं और इच्छाएं । और कुछ नहीं। उन पर हमारा अनुशासन नहीं।
__यदि चेतना हृदय पर, कंठ पर, नासाग्र पर, भृकुटि पर, ललाट के मध्य भाग में और सिर के ऊपर विहरण करने लगती है, वहां टिकती है तो निर्णय हो जाता है कि 'मैं प्राण-पुरुष हूं'-मैं प्रज्ञापुरुष हूं। जब चेतना नाभि के ऊपर नासाग्र तक विहरण करती है तो प्राण-पुरुष प्रकट होता है और जब चेतना भकुटि से ऊपर जागती है तब प्रज्ञा-पुरुष प्रकट होता है।
चेतना के विहरण क्षेत्र के आधार पर निर्णय होगा कि मैं इच्छापुरुष हूं या प्राणपुरुष हूं या प्रज्ञापुरुष हूं। 'कहां है' के द्वारा 'कौन हूं' का निर्णय होगा।
जब चेतना ऊपर सक्रिय होगी तो ऊपर के केन्द्र जाग जाएंगे और नीचे के केन्द्र सो जाएंगे। जब चेतना नीचे सक्रिय होगी तो नीचे के केन्द्र जाग जाएंगे और ऊपर के केन्द्र सो जाएंगे। जब चेतना ऊपर सक्रिय होगी तो इच्छा-केन्द्र पर अपने आप अनुशासन स्थापित हो जाएगा। सबसे बड़ी बात है-नियंत्रण के केन्द्रों का बोध होना।
एक महिला मोटर गाड़ी को तेजी से चला कर ले जा रही थी। सामने से पुलिस की गाड़ी आई। पुलिस ने कहा-इतनी तेज रफ्तार से मोटर चलाना अपराध है। महिला बोली-मैं जानती हूं। परन्तु क्या करूं, मोटर का नियन्त्रण-केन्द्र मेरे वश में नहीं रहा। मेरे हाथ से छूट गया। इतना ही नहीं, मैं भूल ही गई हूं कि नियंत्रण-केन्द्र है कहां? वह उसी रफ्तार से आगे बढ़ी। पेड़ से टकराई। मोटर समाप्त और साथ-साथ चालिका भी समाप्त।
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