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मैं कुछ होना चाहता हूं किन्तु योग होना चाहिए। दिन में २-४ घन्टे पढ़ा, विश्राम किया, फिर पढ़ा, फिर विश्राम किया। यह है इच्छा पर अनुशासन। योग का अर्थ है-परिष्कृत इच्छा पर नियंत्रण, संयम।
अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण सूत्र है-इच्छा पर अनुशासन होना चाहिए। पर प्रश्न उठता है, अनुशासन का उपाय क्या है? क्या कोई जबरन नियंत्रण कर दे? नहीं। अनुशासन स्वयं जागे। मनोनुशासनम् में इसकी पूरी प्रक्रिया बताई गई है।
हमारे शरीर में इच्छा और भावना के सभी केन्द्र हैं। प्रत्येक वृत्ति का केन्द्र हमारे शरीर में है। झगड़ालू वृत्ति का केन्द्र है तो क्षमा का भी केन्द्र है। वासना का केन्द्र है तो वासना-विजय का भी केन्द्र है। अशांति का केन्द्र है तो परम शांति या निर्वाण का भी केन्द्र है। शरीर इन सब केन्द्रों से भरा पड़ा है। केवल प्रक्रिया को जानने की जरूरत है कि कौन-सा बटन दबाने से कौन-सा केन्द्र सक्रिय होता है।
सुदूर अतीत से आदमी के समक्ष एक प्रश्न आता रहा है-'मैं कौन हूं?' इस महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर अनेक चर्चाएं हुई हैं, कोऽहं, कोऽहं, कोऽहं की रट हजारों वर्षों से हजारों साधक लगाते रहे हैं। हजारों साधकों ने अपने अस्तित्व तक पहुंचकर इस प्रश्न को सामाहित किया है। महर्षि रमण ने इस प्रश्न को बहुत उभारा। वे रटते रहे-मैं कौन हूं? मैं कौन हूं? उनकी पुस्तक है-हू एम आई? (Who am I ?) मैं कौन हूं?
आज मैं इसकी व्याख्या भिन्न प्रकार से करना चाहता हूं। हमें यह जानने की कोई आवश्यकता नहीं है कि मैं कौन हूं? मैं आत्मा हूं। मैं परमात्मा हूं, हम इस बात को भूल जाएं। मैं कौन हूं-इसे हम शरीर के संदर्भ में समझें। क्या मैं इच्छा-पुरुष हूं? क्या मैं प्राण-पुरुष हूं? क्या मैं प्रज्ञापुरुष हूं? इसका उत्तर हमें मिल सकता है। कहीं अन्यत्र जाने की जरूरत नहीं, किसी ग्रन्थ को पढ़ने की जरूरत नहीं। कुछ भी करने की जरूरत नहीं। हम यह जान लें कि शरीर में मैं कहां हूं, इसका उत्तर मिला तो मैं कौन हूं'-इसका उत्तर अपने आप ही मिल जाएगा।
शरीर के तीन भाग हैं-१. हृदय से ऊपर का भाग, २. नाभि के पास का भाग और ३. नाभि से नीचे का भाग । साधक को सोचना चाहिए कि शरीर के इन तीनों भागों में मेरी चेतना, मेरा अन्तर्मन कहां रहता है? चेतना नाभि के ऊपर वाले भाग में अधिक रहती है या नाभि के नीचे वाले भाग में। जहां चित्त या चेतना अधिक रहेगी वहां के चक्र या चेतना-केन्द्र अधिक सक्रिय होंगे। नाभि के नीचे सक्रिय रहेगा तो वहां के केन्द्र अधिक सक्रिय होंगे। हृदय के ऊपर वाले भाग में चित्त अधिक विहरण करेगा तो वहां के चक्र अधिक सक्रिय होंगे। जहां चेतना कम हो
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