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आहार और अनुशासन किसी की मृत्यु होती तो माना जाता कि कोई बात नहीं, अवस्था प्राप्त था। आज यह मान्यता बदल चुकी है। आज चालीस से साठ वर्ष तक का आदमी युवा माना जाता है। गरिष्ठ भोजन आदमी को अकाल में बूढ़ा बना देता है। गरिष्ठ भोजन देखने में सुन्दर, खाने में स्वादिष्ट होता है, पर उसमें अग्नितत्त्व पर्याप्त मात्रा में नहीं होते, अत: वह पूरा पचता नहीं। अर्धपक्व भोजन विकृति पैदा करता है, और असमय में ही आदमी काल-कवलित हो जाता है।
___भोजन-विज्ञान में मात्रा का विवेक बहुत जरूरी है। हलके या लघु भोजन की मात्रा भी अधिक नहीं होनी चाहिए। गरिष्ठ भोजन की मात्रा तो और भी कम होनी चाहिए। पर सामाजिक व्यवहार भी अजीब होता है। दस-बीस मित्र मिलते हैं, एक साथ भोजन करने बैठते हैं तो फिर मात्रा का विवेक रहता ही नहीं। कौर देने वाले का दौर चलता है और उदर-कूप जो भर चुका है, उसको और ढूंस-ठूस कर भरा जाता है। जब आदमी गले तक भर जाता है तब खाने से हाथ खींचता है। यह इसलिए चलता है कि आदमी को आहार की मात्रा का पूरा ज्ञान नहीं है। हम जाने-अनजाने इस प्रक्रिया से अपने प्रिय व्यक्ति के प्रति भी इतनी शत्रता का व्यवहार कर देते हैं कि जितना शत्रु, शत्रु के साथ नहीं करता। शत्रु इतना अनिष्ट कर ही नहीं पाता, क्योंकि उसकी प्रत्येक क्रिया को सन्देह की दृष्टि से देखा जाता है। परन्तु मित्र या प्रिय व्यक्ति की क्रिया में यह सन्देह नहीं होता। सब कुछ अच्छा लगता है। वह एक ओर अनेक बीमारियों को निमन्त्रण देता है और दूसरी ओर प्रियता की अनुभूति करता है। वह सोचता है, आज जैसा स्वागत पीछे कभी नहीं हुआ। बड़ा मजा आया। कितना स्वादिष्ट था भोजन! कितनी बढ़िया थी सारी सामग्री! वह भूल जाता है कि भोजन के माध्यम से उसने अनेक बीमारियों को निमन्त्रण दिया है। मात्रा का विवेक बहुत आवश्यक होता है।
__तीसरी बात है कि भोजन सात्विक होना चाहिए। यह तथ्य गहरे अनुसंधान के बाद प्रकट हुआ है। जो भोजन चित्त-वृत्तियों में विकृति पैदा न करे, वह होता है सात्विक भोजन। जिस भोजन से शुक्ल लेश्या के विचार जागे, पद्मलेश्या के प्रकंपन उठे, वह होता है सात्विक भोजन । जिस भोजन के खा लेने पर मन दूषित हो, बुरे विचार आए, उत्तेजना और वासना उभरे, क्रोध और लालच की भावना उग्र हो, हिंसा के भाव जागे, वह भोजन तामसिक या राजसिक होता है। कृष्ण, नील और कापोत लेश्या को उभारने वाला भोजन सात्विक नहीं होता। वह होता है तामसिक। वह शरीर के नीचे के केन्द्रों को सक्रिय करता है। सात्विक भोजन शरीर के नाभि के ऊपर के केन्द्रों को जगाता है, सक्रिय करता है। इस भोजन से आनन्दकेन्द्र, विशुद्धिकेन्द्र, ज्ञानकेन्द्र, दर्शनकेन्द्र और ज्योतिकेन्द्र सक्रिय
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