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मैं कुछ होना चाहता हूं
प्रश्न:- अतीन्द्रिय ज्ञान (अवधि ज्ञान) के आपने पांच प्रकार बतलाए-आगे का, पीछे का, दाएं का, बाएं का और नीचे का। बात समझ में नहीं आई। स्पष्ट करें।
उत्तर:- जब अवधिज्ञान की उपलब्धि होगी तब पूरी बात समझ में आएगी। किंतु कुछेक तथ्य तो अवश्य ही ज्ञात हुए हैं। हमारे शरीर में जो नाड़ी-संस्थान हैं, उसमें एक है सेन्ट्रल नर्वस सिस्टम केन्द्रीय नाड़ी-संस्थान। शरीर के दाएं-बाएं दो नाड़ी संस्थान हैं-सिम्पेथेटिक और पेरासिम्पेथेटिक। इनमें से जो शाखाएं निकली हैं वे आगे भी हैं। चैतन्य-केन्द्रों का उद्गम पीछे से प्रारम्भ होता है और आगे तक आ जाता है। इसलिए प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में हम शरीर के आगे के भाग में भी ध्यान करते हैं और पीछे के भाग में भी ध्यान करते हैं। ध्यान जब परिपक्व होता है तब दाएं-बाएं भी ध्यान करना होता है। ऊपर (सिर पर) भी ध्यान करते हैं। इस प्रकार साधना का उद्देश्य होता है-शरीर को स्फटिक-सा पारदर्शी बना देना।
अतीन्द्रिय ज्ञान की उपलब्धि के लिए शरीर को पारदर्शी बनाना आवश्यक होता है। जब तक शरीर पारदर्शी नहीं हो जाता, जब तक शरीर के मुख्य केन्द्रों को चुम्बकीय क्षेत्र नहीं बना दिया जाता तब तक ज्ञान की रश्मियां छनकर बाहर नहीं आ सकतीं। दीया जल रहा है। उस पर सघन ढक्कन लगा दिया तो प्रकाश बाहर नहीं आयेगा, भीतर ही रह जायेगा। यदि उस दीये पर जालीदार ढक्कन लगा दिया जाता है तो प्रकाश छन-छन कर बाहर आएगा और यदि ढक्कन पारदर्शी है तो प्रकाश चारों ओर से फैलेगा।
ज्ञान के प्रगटीकरण के लिए चैतन्य-केन्द्रों को निर्मल बनाना अत्यन्त आवश्यक है।
__ कुछ लोग पूछते हैं, जैन साधना पद्धति में चैतन्य-केन्द्रों की चर्चा कहां है? उन्हें ज्ञान होना चाहिए कि अवधिज्ञान की सारी चर्चा चैतन्य-केन्द्रों की चर्चा है। पांच प्रकार से अभिव्यक्त होने वाले अवधिज्ञान की चर्चा चैतन्य केन्द्रों की चर्चा है। निशीथ और नम्दी के चूर्णिकार ने अतीन्द्रिय ज्ञान को इन्हीं उदाहरणों से समझाया है कि दीये पर रखे हुए जालीदार ढक्कन से जैसे प्रकाश-रश्मियां बाहर फैलती हैं। वैसे ही शरीर का जो भाग, जो केन्द्र निर्मल हो जाता है उसमें से ज्ञान-ज्योति की रश्मियां फैलती हैं। इसलिए अवधिज्ञान के दो मुख्य विकल्प किए गए
० देशावधि-शरीर के एक भाग से होने वाला ज्ञान । ० सर्वावधि-समूचे शरीर से प्रकट होने वाला ज्ञान। शरीर के किसी भी भाग से वह ज्ञान प्रगट हो सकता है। एक अंगुली से
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