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आहार और अनुशासन
अवधिज्ञान हो सकता है। अंगुली इतनी पारदर्शी बन जाती है कि उससे ज्ञान की रश्मियां निकलने लगती हैं। अंगुली को काम में मत लो अवधिज्ञान नहीं होगा । साधना के क्षेत्र में यह बहुत महत्त्वपूर्ण चर्चा है ।
प्रश्न:- चित्त और मन में क्या अन्तर है ? इच्छा कैसे पैदा होती है ? उत्तर:- चित्त है स्वामी । मन है उसका नौकर । चित्त है चेतना का तन्त्र और मन है मस्तिष्क के द्वारा क्रिया करने वाला तन्त्र । यह चेतना का तन्त्र नहीं है, किन्तु शरीर का तन्त्र है जिसमें चेतना आती है । चित्त है शरीर के साथ 1 काम करने वाली चेतना ।
इच्छा की उत्पत्ति का स्रोत बहुत गहरे में है । इच्छा इस शरीर में पैदा नहीं होती । इच्छा पैदा होती है अवचेतन में । अध्यात्म की भाषा में कहा जा सकता है कि इच्छा पैदा होती है अध्यवसाय में लेश्या में । इच्छा का
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सम्बन्ध केवल वर्तमान शरीर से नहीं, वर्तमान जीवन से नहीं, किन्तु अतीत के अनेक जन्मों तथा अतीत के साथ काम करने वाले सूक्ष्म शरीरों के साथ जुड़ा होता है । इसलिए इच्छा बाहर के निमित्तों से भी हो सकती है और आंतरिक निमित्तों से भी हो सकती है। भीतर में इच्छा का अजस्र स्रोत बह रहा है, निमित्त के मिलने पर इच्छा बाहर प्रकट हो जाती है । बहुत गहरे में उतरकर हमें इच्छा का अध्ययन करना होगा ।
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