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मैं कुछ होना चाहता हूं
बदलती। कफ का प्रकोप शांत होते ही लालच की वृत्ति में अन्तर आ जाएगा। कफ और लालच का गहरा संबंध है। वायु को कुपित करने वाले द्रव्य व्यक्ति में निराशा को जन्म देते हैं। जिस व्यक्ति में वायु कुपित रहता है वह व्यक्ति निराश, डिप्रेशन से ग्रस्त, मानसिक अवसाद से युक्त होता है। वायु का और इन सब दोषों का गहरा सम्बन्ध है।
आदमी का जीवन भोजन से बहुत बंधा हआ है। आतिथ्य सत्कार भी इससे प्रारम्भ होता है। दो आदमी या दो औरतें जहां भी मिलती हैं, भोजन की चर्चा चल पड़ती है।
एक बार एक व्यक्ति ने अपने मित्र को भोजन के लिए आमंत्रित करते हुए कहा-शादी है, भोजन करने जरूर आना। ठीक समय पर मित्र पहुंच गया। उसने देखा निमंत्रण देने वाला मित्र गधे को रगड़-रगड़ कर नहला रहा है। उससे पूछा-क्या कर रहे हो? उत्तर मिला-गधे की आज शादी है। इसे नहला रहा हूं। अरे, गधे की शादी है! भोजन का निमंत्रण दिया था। क्या खिलाओगे?' 'मित्र! उतावले मत हो। जो दुल्हा खायेगा वही तुम्हें खिलाऊंगा।'
भोजन की चर्चा जितनी व्यापक है उतनी व्यापक और कोई चर्चा नहीं है।
भक्तकथा अर्थात् भोजन की कथा। यह कथा अकारण नहीं होती। आदमी भोजन से इतना बंधा हुआ है, जितना वह और किसी से बंधा हुआ नहीं है। भोजन से शरीर बनता है, रक्त बनता है, मांस बनता है और सारी धातुएं बनती हैं। सात धातुओं से परे जो ओज है वह भी भोजन से बनता है। ओज को आज की भाषा में विद्युत् कहा जाता है। सारे रसायन भोजन से निष्पन्न होते हैं।
जीवन का पूरा चक्र भोजन से संचालित होता है। हमारी सारी वृत्तियां भोजन से संचालित होती हैं। भोजन के आधार पर पूरे व्यक्तित्व का अंकन किया जा सकता है। जिस व्यक्ति ने भोजन का यथार्थ मूल्यांकन नहीं किया वह अपने व्यक्तित्व को भी कैसे समझ सकता है? वह अपनी आदतों का विश्लेषण या रूपान्तरण कैसे कर सकता है?
जिज्ञासु ने पूछा-'इतनी लम्बी चर्चा के बाद यह स्पष्ट समझ में आ गया कि आदतों को बदलने के लिए आहार की शुद्धि बहुत आवश्यक है। पर आप यह बताएं कि आहार-शुद्धि का तात्पर्य क्या है?'
___ मैंने कहा-'मेरे शब्दों में नहीं, मनोनुशासनम् ग्रन्थ के संदर्भ में बता रहा हं कि जो भोजन हित, मित और सात्विक होता है, वह आहार-शुद्धि है। जो आहार हितकारी होता है, परिमित होता है और सात्विक होता है वही आहार शुद्ध होता है। यही आहार-शुद्धि है।
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