Book Title: Main Kuch Hona Chahta Hu
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 19
________________ मैं कुछ होना चाहता हूं भोजन की अपेक्षा होती है वैसे ही मस्तिष्क को भी भोजन की अपेक्षा होती है। शरीर को टॉनिक चाहिए तो मस्तिष्क को भी टॉनिक चाहिए। आज के वैज्ञानिक मस्तिष्क के टॉनिकों की खोज में लगे हुए हैं। प्राचीन काल में अतीन्द्रिय-ज्ञानियों ने भी इस विषय में अनेक खोजें की थीं। आयुर्वेद के ग्रंथ इन खोजों से भरे पड़े हैं। इन ग्रन्थों में मस्तिष्कीय टॉनिक और नाड़ी-संस्थान को बल-अबल देने वाले पदार्थों के विषय में बहुत लम्बी चर्चा उपलब्ध होती है। मस्तिष्क का संबंध है विद्युत् के आवेशों से और रसायन से। रसायन बनते हैं आहार से। इस प्रकार आहार का सम्बन्ध जुड़ गया। जैसा आहार वैसा रसायन, जैसा रयासन वैसी मस्तिष्कीय क्रिया और जैसी मस्तिष्कीय क्रिया वैसा हमारा आचार-व्यवहार, विचार और आदतें। यह एक पूरा चक्र है। आहार को समझे बिना आदतों को नहीं बदल सकते। आहार-शुद्धि किए बिना स्वभाव का परिवर्तन नहीं हो सकता। आदमी दूसरे-दूसरे कितने ही परिवर्तन करे, स्वभाव नहीं बदलेगा जब तक कि वह अपने आहार के क्रम को नहीं बदल देता। दोनों का गहरा सम्बन्ध है। सबसे पहले हमारा ध्यान आहार पर केन्द्रित होना चाहिए। आहार का अर्थ बहुत व्यापक है। केवल मुंह से खाना ही आहार नहीं है। हम जो कुछ बाहर से ग्रहण करते हैं वह सारा आहार है। नथुनों से जो श्वास लेते हैं, वह भी आहार है। बोलने के लिए बाह्य वातावरण से भाषा के योग्य परमाणु लेते हैं, वह भी आहार है। चिंतन के लिए मानसिक परमाणुओं को संगृहीत करते हैं, वह भी आहार है। प्राण का आकर्षण, भाषा का आकर्षण, चिन्तन के परमाणुओं का आकर्षण आदि-आदि सभी आहार हैं। इस व्यापक अर्थ में हम आहार को समझें। इसको समझ लेने पर सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी। आहार-मस्तिष्क को अत्यधिक प्रभावित करता है। आदमी ने शराब पी। मस्तिष्क का नियंत्रण ढीला हो गया। वह पागल बन गया। पागल किसने बनाया? भोजन ने उसे पागल बना दिया। शराब भी एक प्रकार का भोजन है, आहार है। भांग पी। आकाश-पाताल एक हो गए। सारा संसार घूमने लगा। यह भी आहार के कारण ही हुआ। भांग भी एक प्रकार का आहार है। मादक द्रव्यों के परिणामों से हम परिचित हैं। किसी व्यक्ति की स्मृति कमजोर है। वह ब्राह्मी का प्रयोग करता है, शंखपुष्पी का प्रयोग करता है, स्मृति बढ़ जाती है। आज के वैज्ञानिक स्मृति को बढ़ाने वाले अनेक प्रकार के रसायनों की खोज कर रहे हैं और वे साथ ही साथ स्मृति घटाने वाले रसायनों की खोज भी कर रहे हैं। उनका मानना है कि बुद्धि और स्मृति सबके लिए जरूरी नहीं होती। जो चोर हैं, लुटेरे हैं, हत्यारे हैं, खूखार हैं, उनकी स्मृति को कम कर दिया जाए, जिससे अपराध कम हो सके। इस स्थिति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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