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आहार का अनुशासन
एक भाई ने पूछा-मैं जैसा हूं वैसा ही रहूंगा या बदल भी सकता हूं?' मैंने कहा - 'हमारी दुनिया का नियम है - परिवर्तन। हर आदमी बदल सकता है। जो बदलना चाहे वह बदल सकता है। जो बदलना नहीं चाहे, वह बदल नहीं सकता । 'परिवर्तन शाश्वत नियम है। प्रत्येक पदार्थ में क्षण-क्षण परिवर्तन होता है । पर आदमी जिस दिशा में परिवर्तन लाना चाहे उस दिशा में परिवर्तन ला सकता है तुम भी बदल सकते हो ।'
उसने पूछा- 'कैसे बदल सकता हूं। कुछ उपाय बताएं। क्या आदतें बदली जा सकती हैं?"
मैंने कहा- 'बहुत अच्छी तरह से बदली जा सकती हैं । यदि आदतें न बदलें तो पुरुषार्थ का कोई अर्थ ही नहीं होता, अस्तित्व का कोई अर्थ ही नहीं होता । सब अर्थशून्य हो जाता है, यदि आदमी न बदले या न बदल सके । पुरुषार्थ की गाथा इसलिए गाई जाती है कि असंभव लगने वाली बात भी उसके द्वारा संभव बन जाती है । आदत को बदलने के लिए आहार - शुद्धि करनी होती है । '
उसने पूछा- बड़ा आश्चर्य होता है, आदतों को बदलने में आहार - शुद्धि से क्या संबंध है? खाता हूं अपनी रुचि के लिए, खाता हूं स्वाद के लिए, खाता हूं जिहा की तृप्ति के लिए। फिर आदतों का इससे क्या संबंध ? आदतें कहीं, खाने का प्रश्न कहीं। यह बिलकुल बेमेल - सा लगता है ।
मैंने कहा- बेमेल है, यह हमारी स्थूलबुद्धि का निर्णय है । वास्तव में यही यथार्थ है । जिस व्यक्ति ने आहार- -शुद्धि नहीं की, वह कभी अपनी आदत को नहीं बदल सकता । गहरा संबंध है आहार का और आदतों का। आदतें बनती हैं चैतन्य-केन्द्रों के स्रोतों के द्वारा । हमारे मस्तिष्क में अनेक बिन्दु हैं, केन्द्र हैं । वे हमारी प्रवृत्तियों का संचालन करते हैं। आदमी नींद लेता है। नींद का नियामक केन्द्र है मस्तिष्क में । आदमी हंसता है, रोता है, सोचता है, चिंतन करता है। इन सबके अलग-अलग केन्द्र हैं । स्मृति का केन्द्र है, कल्पना का केन्द्र है, बुद्धि का केन्द्र है । जितनी मानसिक प्रवृत्तियां हैं, उन सबके केन्द्र हैं मस्तिष्क में । जो केन्द्र सक्रिय हो जाता है, जाग जाता है आदमी वैसा ही बन जाता है। सारे जीवन का संचालन इन मस्तिष्कीय केन्द्रों द्वारा होता है। सारे केन्द्र विद्युतीय आवेशों के द्वारा और रसायनों के द्वारा जागते हैं। मस्तिष्क के अपने रसायन हैं । जैसे शरीर को
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