Book Title: Kshayopasham Bhav Charcha
Author(s): Hemchandra Jain, Rakesh Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

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Page 15
________________ क्षयोपशम भाव चर्चा आज से लगभग 24 वर्ष पूर्व सन् 1993 में महावीर जयन्ति के समय मेरी आचार्य विद्यासागरजी के साथ नागपुर प्रवास के दौरान अनेक विषयों पर लम्बी मन्त्रणा हुई थी, उस समय इस क्षयोपशमभाव की बहुत चर्चा हुई थी। उसी के आधार पर बहुत ऊहापोह करने के बाद मैंने अपने विशेष समाधान हेतु एक पत्र भी आगम के मर्मज्ञ विद्वान् पण्डित जवाहरलालजी भीण्डर को लिखा था, जिसका मुझे समाधान प्राप्त नहीं हुआ। इस पत्र की अनेक प्रतियाँ मैंने अनेक विद्वानों को भी भेजी थीं, समाधानस्वरूप एक पत्र पण्डित राजमलजी साहब, भोपाल का प्राप्त हुआ था, जिसमें उन्होंने स्वयं का पण्डित जवाहरलालजी को लिखा पत्र और उसका जवाब भी मुझे प्रेषित किया, जिसके कुछ अंश हम आगे प्रकाशित भी कर रहे हैं। इसी प्रकार ब्र. हेमचन्दजी के द्वारा भेजा गया विस्तृत जवाब भी हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। सर्व प्रथम पण्डित राजमलजी साहब, भोपाल के द्वारा लिखे पत्र को, जिसमें उन्होंने ब्र. पण्डित भुवनेन्द्रकुमारजी के पत्र का भी उल्लेख हुआ, उसके सन्दर्भित अंश को यहाँ पाठकों के लाभार्थ प्रस्तुत कर रहे हैं - “श्रीमान् आदरणीय आत्मार्थी पण्डित जवाहरलालजी शास्त्रीजी, सादर जयजिनेन्द्र! अत्र कुशलं तत्रास्तु!! ..... इन्दौर से एक मुमुक्षु भाई ने प्रवचनसारजी की गाथा 157-158 श्री अमृतचन्द्राचार्यजी की टीका में शुभोपयोग और अशुभोपयोग के स्वरूप का कथन करते हुए विशिष्ट क्षयोपशमदशा में रहनेवाले तथा विशिष्ट उदयदशा में रहनेवाले दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीयरूप पुद्गलों के अनुसार परिणति में लगा होने से ........ शुभोपयोग तथा अशुभोपयोग है - ऐसा लिखा है। उक्त टीका के आधार पर निम्न प्रश्न हैं - (1) क्या शुभोपयोग क्षयोपशमभाव है ? (2) क्या वह मिथ्यादृष्टि को नहीं होता? (3) क्या सम्यग्दृष्टियों को अशुभोपयोग नहीं होता? (4) शुभरागअशुभराग और शुभोपयोग-अशुभोपयोग में क्या भेद है ? (5) क्या सम्यग्दृष्टि को अशुभराग होता है ? (6) क्या मिथ्यादृष्टि को शुभराग होता है? मैं पूर्वापर गाथाओं के आधार पर चिन्तन कर निम्न निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ

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