Book Title: Kshayopasham Bhav Charcha
Author(s): Hemchandra Jain, Rakesh Jain
Publisher: Akhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ क्षयोपशम भाव चर्चा आगम-प्रमाण देते हुए काफी पत्राचार भी हुआ, परन्तु विस्तृत समाधान माँगने पर भाई ब्र. पं. श्री हेमचन्दजी ने उक्त सभी शंकाओं के जवाब विस्तृतरूप से हमें लिखकर भेजे / जो कुछ हाथ आया, वह पढ़कर मुझ अल्पमती का समाधान तो हुआ है, परन्तु विचार यह आता है कि उक्त जिनभाषित के सम्पादकीय पढ़ने पर विद्वानों के मन में भी कुछ शंकाएँ तो अवश्य ही उभरी होंगी; अतः वह सारी चर्चा क्रम से, सुव्यवस्थित उनसे ही लिखाकर, इस पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने का निर्णय लिया; ताकि धवला आदि के माध्यम से जो प्रमाण भाई ब्र. पं. हेमचन्दजी ने दिये हैं, उन्हें छानने का, या उनको ध्यान में रखकर उक्त विषयों पर विचार करने का मौका सबको मिले और समाज विवादित विषय पर निर्णय कर सकें, दिग्भ्रमित होने से बचें, अनेकों को उसका लाभ मिलें और अगर इस विषय में और कुछ त्रुटियाँ रह गयी हों, जो हमारी नजर से ओझल रह गयी हो, उन्हें भी सुधारने का हमें भी मौका मिले। विद्वद्वर्यों से करबद्ध प्रार्थना है कि वे अपने अभिप्राय से अवगत करावें। भाव, किसी के अविनय का नहीं है, केवल सत्यार्थ तक पहुँचने में हम सब एक-दूसरे के पूरक बनें - यही भावना भाते हैं। अगर किसी के भावों को ठेस पहुँचती है तो क्षमा चाहते हैं। हमारे ये विचार, किसी व्यक्ति-विशेष से प्रभावित नहीं हैं; बस, हम तो आगम के आलोक में आगम-अध्यात्म का मर्म जानना चाहते हैं, जिससे विरोधाभास मिट सके। अगर कुछ भी नहीं बनता है तो इस चर्चा के बहाने हमें अपनी शंकाओं को मिटाकर, अपना ज्ञान निर्मल करने का अवसर प्राप्त हुआ, हमारे लिए यह भी कुछ कम लाभ नहीं है; हमें उसी में सन्तोष है। आशा है कि इस कृति को भी हमारी इसी योग्यता के अनुसार आप विद्वद्वर्य पढ़ेंगे और अगर हमारी सोच में कहीं कुछ अधूरा हो, छूट गया हो तो अवगत करायेंगे, मार्गदर्शन करेंगे, ताकि समाधान की सीमा तक हम सभी अपने आप को पहुँचा सकें। ___ पूर्व में इसका ‘सम्यक् तत्त्वचर्चा' के नाम से प्रकाशन, धर्ममंगल पत्रिका के माध्यम से अध्यात्मयोगी 108 श्री वीरसागरजी महाराज की पुण्यतिथि (यमसल्लेखना-10.03.1993) के अवसर पर भी किया गया था। अतः सभी के आत्मकल्याण की शुभकामना के साथ विराम लेती हूँ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 178