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कातन्वव्याकरणम् ३२. ड्-गु-वर्गीय चतुर्थ वर्ण - अकृतवद्भाव -र-ई-ऊर्-स्- लोप आदेश
पृ० ४३८ - ७० ['मधुलिट-सुविट -षट् - देवेट्' इत्यादि में 'हकार - शकार - षकार - जकार' को डकारादेश, 'गोधुक् - गोधुग्भ्याम्' इत्यादि में हकार को गकारादेश, 'वाक् - दृक्' में चकार - शकार को गकारादेश, 'निघुट् - ज्ञानभुत् - गर्धप्' आदि में ‘गकार-बकार - दकार को घकार - भकार - धकार आदेश, सजूः- आशी:- आशीस्ता' इत्यादि में षकार को रकार, 'गीः - गीर्षु - धूः- धूस्तरा' आदि में इर् को ईर् - उर् को ऊर् आदेश, 'अहः- अहोभ्याम्' इत्यादि में नकार को सकारादेश तथा विद्वान् - पुम्भ्याम्, साधुमक् साधुतट्- सखा - राजभ्याम्' इत्यादि में सकार - ककार - नकार आदि का लोप]
३३. नलोपनिषेध-अलुप्तवद्भाव-र-वर्गीय तृतीय वर्ण-वर्गीय प्रथम वर्ण-विसर्ग- पूर्ववर्ती कार्यसम्पन्नता
पृ० ४७० - ८९ ['हे राजन्! हे साम !' इत्यादि में नलोप का निषेध, 'राजभ्याम् - राजसु - विद्वान्' आदि में नकार - संयोगान्त लोप के अलुप्तवद्भाव से दीर्घ - नलोप आदि का प्रतिषेध, ‘सर्पिभ्या॑म् - धनुर्ध्याम्' आदि में सकार को रकारादेश, 'योषिद्भ्याम् - मज्जति - लज्जते' इत्यादि में तवर्गीय तृतीय वदिश, 'षट्सु-इच्छति - गच्छति' इत्यादि में ड् को ट्-छ् को च आदेश, 'विधप् - विधब् - वाक्- वाग्' आदि में भ् को प्- ब्, एवं ग् को क्-ग् आदेश, ‘गीः- धू:- वृक्षः- पयोभ्याम्' आदि में रकार - सकार को विसगदिश तथा ‘सुवाक्- सुवाग् - सुपथि - सुद्यु- देवेट - देवेड्' इत्यादि में च् को ग्, ग् को क्, सि - अम् - नलोप, व् -इ को उ-य् आदेश एवं ज् को इड् को ट् आदेश]
३४. प्रथमं परिशिष्टम् = कातन्त्रपरिशिष्टम् पृ० ४९१ - ५३१
[नामप्रकरण के १०१, षत्वप्रकरण के ५१ तथा णत्वप्रकरण के ३७ सूत्र | सर्वादिगण, लुग्विधि, पद् - हद् - यूषन् - दोषन् आदि आदेश -म-र-दीर्घ - लोप आदि विधियाँ, वर्णका - वर्तका आदि शब्दसिद्धि, अग्नीषोमौ - युधिष्ठिर – भूमिष्ठ