Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका प्रकरण
पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रियों के पाँच भंग इस प्रकार होते हैं
बन्ध
उदय
सत्ता
इन पाँच भंगों में से पहला भंग अनिवृत्ति गुणस्थान तक, दूसरा भंग अप्रमत्तसंयत गुणस्थान तक, तीसरा भंग उपशमश्रेणि या क्षपकश्रेणि में विद्यमान सूक्ष्मसंपराय संयत के, चौथा भंग उपशान्तमोह गुणस्थान में और पांचवाँ भंग क्षीणमोह गुणस्थान में होता है।
यद्यपि केवली जिन भी पर्याप्त संज्ञी पंचेन्द्रिय हैं और उनके भी पाँच भंग मानना चाहिये। लेकिन उनके भंग अलग से बताने का कारण यह है कि केवली जीवों के क्षायोपशमिक ज्ञान नहीं रहते हैं अतः वे संज्ञी नहीं होते हैं । इसीलिये उनके संज्ञित्व का निषेध करने के लिये गाथा में उनके भंगों का पृथक् से निर्देश किया है—'दो भंगा हुंति केवलिणो'। उनके एक प्रकृतिक बन्ध, चार प्रकृतिक उदय और चार प्रकृतिक सत्ता-यह एक भंग तथा चार प्रकृतिक उदय व चार प्रकृतिक सत्ता, लेकिन बंध एक भी प्रकृति का नहीं, यह दूसरा भंग ही होता है। पहला भंग सयोगिकेवली के पाया जाता है, वहाँ सिर्फ एक वेदनीय कर्म का ही बंध होता है, किन्तु उदय और सत्ता चार अधाति कर्मों की रहती है। दूसरा भंग अयोगिकेवली के होता है। क्योंकि इनके एक भी कर्म का बंध न होकर सिर्फ चार अघाति कर्मों का उदय व सना पाई जाती है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org