Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
प्रश्न – जबकि मिथ्यादृष्टि जीव के अनन्तानुबन्धी चतुष्क का उदय नियम से होता है, तब यहाँ सात प्रकृतिक उदयस्थान में तथा भय या जुगुप्सा में से किसी एक के उदय से प्राप्त होने वाले पूर्वोक्त दो प्रकार के आठ प्रकृतिक उदयस्थानों में उसे अनन्तानुबन्धी के उदय से रहित क्यों बताया है ?
समाधान - जो सम्यग्दृष्टि जीव अनन्तानुबन्धी चतुष्क की विसंयोजना करके रह गया । क्षपणा के योग्य सामग्री न मिलने से उसने मिथ्यात्व आदि का क्षय नहीं किया। अनन्तर कालान्तर में वह मिथ्यात्व को प्राप्त हुआ अतः वहाँ उसने मिथ्यात्व के निमित्त से पुनः अनन्तानुबन्धी चतुष्क का बन्ध किया । ऐसे जीव के एक आवलिका प्रमाणकाल तक अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं होता किन्तु आवलिका के व्यतीत हो जाने पर नियम से होता है । अतः मिथ्यादृष्टि जीव के अनन्तानुबन्धी के उदय से रहित स्थान बन जाते हैं । इसी कारण से सात प्रकृतिक उदयस्थान में और भय या जुगुप्सा के उदय से प्राप्त होने वाले आठ प्रकृतिक उदयस्थान में अनन्तानुबन्धी का उदय नहीं बताया है ।
"ननु कथं बन्धावलिकातिक्रमेऽप्युदयः संभवति ? यतोऽबाधाकालक्षये सत्युदयः, अबाधाकालश्चानन्तानुबन्धिनां जघन्येनान्तर्मुहूर्तम्, उत्कर्षेण तु चत्वारि वर्ष सहस्राणीति, नंष दोषः, यतो बन्धसमयादारभ्य तेषां तावत् सत्ता भवति, सत्तायां च सत्यां बन्धे प्रवर्तमाने तदुग्रहता पतदुग्रहतायां च शेष समानजातीयप्रकृतिदलिक सङ्क्रान्तिः संक्रमच्च दलिकं पतग्रहप्रकृतिरूपतया परिणमते, ततः संक्रमावलिकायामतीतायामुदय:, ततो बन्धावलिकायामतीतायामुदयोऽभिधीयमानो न विरुध्यते । १
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प्रश्न – किसी भी कर्म का उदय अबाधाकाल के क्षय होने पर होता है और अनन्तानुबन्धी चतुष्क का जघन्य अबाधाकाल अन्तर्मुहूर्त
१ सप्ततिका प्रकरण टीका,
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पृ० १६५
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