Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
इसी प्रकार तिर्यंच, मनुष्य और नरक गति में ही नरकायु की सत्ता होती है, देवगति में नहीं क्योंकि देवों के नरकायु का बंघ सम्भव नहीं है ।
उक्त प्रकृतियों के सिवाय शेष सभी प्रकृतियों की सत्ता चारों गतियों में पाई जाती है । आशय यह है कि देवायु का बंध तो तीर्थंकर प्रकृति के बंध के पहले भी होता है और पीछे भी होता है, किन्तु नरका के संबंध में यह नियम है कि जिस मनुष्य ने नरकायु का बंध कर लिया है, वह सम्यग्दृष्टि होकर तीर्थंकर प्रकृति का भी बंध कर सकता है । इसी प्रकार तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला जीव देव और नारक -- मनुष्यायु का ही बंध करते हैं तिर्यंचायु का नहीं, यह नियम है । अतः तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता तिर्यंचगति को छोड़कर शेष तीन गतियों में पाई जाती है।
इसी प्रकार नारक के देवायु का, देव के नरकायु का बंध नहीं करने का नियम है, अतः देवायु की सत्ता नरकगति को छोड़कर शेष तीन गतियों में और नरकायु की सत्ता देवगति को छोड़कर शेष तीन गतियों में पाई जाती है ।
उक्त आशय का यह निष्कर्ष हुआ कि तीर्थंकर, देवायु और नरकायु इन तीन प्रकृतियों के सिवाय शेष सब प्रकृतियों की सत्ता सब गतियों में होती है। यानी नाना जीवों की अपेक्षा नरकगति में देवायु के बिना १४७ प्रकृतियों की सत्ता होती है, तियंचगति में तीर्थंकर प्रकृति के बिना १४७ प्रकृतियों की और देवगति में नरकायु के बिना १४७ प्रकृतियों की सत्ता होती है । लेकिन मनुष्यगति में १४८ प्रकृतियों की ही सत्ता होती है ।
पूर्व में गुणस्थानों में कर्म प्रकृतियों के बंध, उदय, सत्ता स्थानों का कथन किया गया है तथा गुणस्थान प्रायः उपशमश्रेणि, क्षपकश्रेणि
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