Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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उदीरणा का विच्छेद हो जाता है तथा सत्ता में केवल एक समय कम दो आवलिका के द्वारा बंधे हुए दलिक शेष रहते हैं और बाकी सबका अभाव हो जाता है।
तत्पश्चात् माया की प्रथम किट्टी की दूसरीस्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक अन्तर्मुहर्त काल तक उसका वेदन करता है तथा मान के बंध आदिक के विच्छिन्न हो जाने पर उसके दलिक का एक समय कम दो आवलिका काल में गुणसंक्रम के द्वारा माया में करता है । माया की प्रथम किट्टी का एक समय अधिक एक आवलिका काल शेष रहने तक वेदन करता है। तत्पश्चात् माया की दूसरी किट्टी की दूसरी स्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक समय अधिक एक आवलिका प्रमाण काल के शेष रहने तक उसका वेदन करता है। उसके बाद माया की तीसरी किट्टी की दूसरी स्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथम स्थिति करता है और उसका एक समय अधिक एकं आवलिका काल के शेष रहने तक वेदन करता है। इसी समय माया के बंध, उदय और उदीरणा का एक साथ विच्छेद हो जाता है तथा सत्ता में केवल एक समय कम दो आवलिका के द्वारा बंधे हुए दलिक शेष रहते हैं, शेष का अभाव हो जाता है।
तत्पश्चात् लोभ की प्रथम किट्टी की दूसरीस्थिति में स्थित दलिक का अपकर्षण करके प्रथमस्थिति करता है और एक अन्तर्मुहर्त काल तक उसका वेदन करता है तथा माया के बंध आदिक के विच्छिन्न हो जाने पर उसके नवीन बंधे हुए दलिक का एक समय कम दो आवलिका काल में गुणसंक्रम के द्वारा लोभ में निक्षेप करता है तथा माया की प्रथम किट्टी का एक समय अधिक आवलिका काल के शेष रहने तक ही वेदन करता है।
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