Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
पारिभाषिक शब्द-कोष
बाल पंडित वीर्यान्तराय-देशविरति के पालन की इच्छा रखता हुआ भी
जीव जिसके उदय से उसका पालन न कर सके । बाल दीर्यान्तराय-सांसारिक कार्यों को करने की सामर्थ्य होने पर भी जीव
जिसके उदय से उनको न कर सके । बाह्य निवृत्ति---इन्द्रियों के वाद्य-आकार की रचना ।
भय मोहनीयकर्म-जिस कर्म के उदय से कारणवशात् या बिना कारण डर
पैदा हो। भयप्रत्यय अवधिज्ञान-जिसके लिए संयम आदि अनुष्ठान की अपेक्षा न हो
किन्तु जो अवधिज्ञान उस गति में जन्म लेने से ही प्रगट होता है । भव विपाकी प्रकृति-भव की प्रधानता से अपना फल देने वाली प्रकृति । भव्य-जो मोक्ष प्राप्त करते हैं या पाने की योग्यता रखते हैं अथवा जिनमें
सम्यग्दर्शन आदि भाव प्रगट होने की योग्यता है । भाव-जीव और अजीव द्रव्यों का अपने-अपने स्वभाव रूप से परिणमन
होना। भाव अनुयोगद्वार-जिसमें विवक्षित धर्म के भाव का विचार किया जाता है । भावकर्म-जीव के मिथ्यात्व आदि वे वैभाविक स्वरूप जिनके निमित्त से कर्म
पुद्गल कर्म रूप हो जाते हैं। भावप्राण-ज्ञान, दर्शन, चेतना आदि जीव के गुण । भावलेश्या-भोग और संक्लेश से अनुगत आत्मा का परिणाम विशेष । संक्लेश
का कारण कषायोदय है अतः कषायोदय से अनुरंजित योग प्रवृत्ति को भावलेश्या कहते हैं। मोहकर्म के उदय या क्षयोपशम या उपशम या क्षय से होने वाली जीव के प्रदेशों में चंचलता को भावलेश्या
कहते हैं। भाववेद-मैथुनेच्छा की पूर्ति के योग्य नामकर्म के उदय से प्रगट बाह्य
चिन्ह विशेष के अनुरूप अभिलाषा अथवा चारित्र मोहनीय की नोकषाय की वेद प्रकृतियों के कारण स्त्री, पुरुष आदि से रमण करने की इच्छा
रूप आत्म परिणाम । भावभुत-इन्द्रिय और मन के निमित्त से उत्पन्न होने वाला ज्ञान जो कि Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org