Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

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Page 567
________________ परिशिष्ट ३ कर्म ग्रन्थों की गाथाओं एवं व्याख्या में आगत पिण्डप्रकृति-सूचक शब्दों का कोष (अ) अगुरुलघुचतुष्क—अगुरुलघु नाम, उपधातनाम, पराघातनाम, उच्छ्वासनाम । अघातिचतुष्क -- वेदनीय, आयु, नाम, गोत्र कर्म । अज्ञानत्रिक --- मतिअज्ञान, श्रुतअज्ञान, विभंगज्ञान ( अवधि - अज्ञान ) अनन्तानुबंधी एकत्रिशत्- (अनन्तानुबंधी क्रोध आदि ३१ प्रकृतियाँ) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ; न्यग्रोध परिमंडल, सादि, वामन, कुब्ज संस्थान; वऋषमनाराच संहनन, ऋषमनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका संहनन; अशुभ विहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दुभंग नाम, दुःस्बर नाम, अनादेय नाम, निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानद्धि, उद्योत नाम; तिथंचगति, तियंचानुपूर्वी, तिर्यंचायु; मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी; औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग | अनन्तानुबंधी चतुविशति -- ( अनन्तानुबंधी क्रोध आदि २४ प्रकृतियाँ) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ; न्यग्रोध परिमंडल, सादि, वामन, कुब्ज संस्थान; ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका संहनन; अशुभ विहायोगति, नीच गोत्र, स्त्रीवेद, दुर्भग नाम, दु:स्वर नाम, अनादेय नाम, निद्रा-निद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानद्धि, उद्योत नाम, तियंचगति, तियंचानुपूर्वी । अनन्तानुबंधीचतुष्क---अनन्तानुबंधी, क्रोध मान, माया, लोभ । अनन्तानुबंधी षविशति --- ( अनन्तानुबंधी क्रोध आदि २६ प्रकृतियाँ) अनन्तानुबंधी क्रोध, मान, माया, लोभ, न्यग्रोधपरिमंडल, सादि, वामन, कुब्ज संस्थान; ऋषभनाराच, नाराच, अर्धनाराच, कीलिका संहनन; अशुभ विहायोगति, नीचगोत्र, स्त्रीवेद, दुर्भाग नाम, दु:स्वर नाम, अनादेय नाम, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International

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