Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पारिभाषिक शब्द-कोष
जाता है उनकी उसी रूप में विचारणा, गवेषणा करना मार्गणा .
कहलाता है। मारणान्तिक समुद्घात-मरण के पहले उस निमित्त जो समुद्घात होता है,
उसे मारणान्तिक समुद्घात कहते हैं । मिथ्यात्व-पदार्थों का अयथार्थ श्रद्धान । मियादृष्टि गुणस्थान-मिथ्यात्व मोहनीय के उदय से जीव की दृष्टि (श्रद्धा,
प्रतिपत्ति) मिथ्या (विपरीत) हो जाना मिथ्यादृष्टि है और मिथ्यादृष्टि
जीव के स्वरूप विशेष को मिथ्यादृष्टि गुणस्थान कहते हैं । मिथ्यात्व मोहनीय-जिसके उदय से जीव को तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप की रुचि
न हो । मिथ्यात्व के अशुद्ध दलिकों को मिथ्यात्व मोहनीय कहते हैं । मिथ्यात्व श्रुत--मिथ्यादृष्टि जीवों के श्रुत को मिथ्यात्व श्रुत कहा जाता है । मिश्र गुणस्थान-मिथ्यात्व के अर्ध शुद्ध पुद्गलों का उदय होने से जब जीव की
दृष्टि कुछ सम्यक् (शुद्ध ) और कुछ मिथ्या (अशुद्ध) अर्थात् मिश्र हो जाती है तब वह जीव मिश्रहष्टि कहलाता है और उसके स्वरूप विशेष को मिश्र गुणस्थान कहते हैं। इसका दूसरा नाम सम्यग्मिथ्यादृष्टि
गुणस्थान भी है। मिश्र मनोयोग-किसी अंश में यथार्थ और किसी अंश में अयथार्थ ऐसा चिन्तन
जिस मनोयोग के द्वारा हो उसे मिश्र मनोयोग कहते हैं । मिश्र मोहनीय-जिस कर्म के उदय से जीव को यथार्थ की रुचि या अरुचि न
होकर दोलायमान स्थिति रहे । मिथ्यात्व के अर्धशुद्ध दलिकों को भी
मिश्र मोहनीय कहा जाता है। मिश्र सम्यक्त्व-सम्यमिथ्यात्व मोहनीयकर्म के उदय से तत्त्व और अतत्त्व
इन दोनों की रुचि रूप लेने वाला मिश्र परिणाम । मुक्त जीव- संपूर्ण कर्मों का क्षय करके जो अपने ज्ञान, दर्शन आदि माव
प्राणों से युक्त होकर आत्मस्वरूप में अवस्थित हैं, वे मुक्त जीव
कहलाते हैं। मुहत-दो घटिका या ४८ मिनट का समय । मूल प्रकृति- कर्मों के मुख्य भेदों को मूल प्रकृति कहते हैं।
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