Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
होता है । चौथे समय में लोक में जो अवकाश शेष रहता है उसे भर देते है । इसे लोकपूरण अवस्था कहते हैं । इस प्रकार से लोक - पूरित स्थिति बन जाने के पश्चात् पाँचवें समय में संकोच करते हैं और आत्म- प्रदेशों को मंथान के रूप में परिणत कर लेते हैं। छठे समय में मंथान रूप अवस्था का संकोच करते हैं। सातवें समय में पुन: कपाट अवस्था को संकोचते हैं और आठवें समय में स्वशरीरस्थ हो
जाते हैं ।
इस प्रकार यह केवलिसमुद्घात की प्रक्रिया है ।
योग निरोध की प्रक्रिया
जो केवली समुद्घात को प्राप्त होते हैं वे समुद्घात के पश्चात् और जो समुद्घात को प्राप्त नहीं होते हैं वे योग-निरोध के योग्य काल के शेष रहने पर योग निरोध का प्रारम्भ करते हैं ।
इसमें सबसे पहले बादर काययोग के द्वारा बादर मनोयोग को रोकते हैं । तत्पश्चात बादर वचनयोग को रोकते हैं। इसके बाद सूक्ष्म काययोग के द्वारा बादर काययोग को रोकते हैं। तत्पश्चात् सूक्ष्म मनोयोग को रोकते हैं। तत्पश्चात् सूक्ष्म वचनयोग को रोकते हैं । तत्पश्चात् सूक्ष्म काययोग को रोकते हुए सूक्ष्मक्रियाप्रतिपात ध्यान को प्राप्त होते हैं। इस ध्यान की सामर्थ्य से आत्मप्रदेश संकुचित होकर निश्छिद्र हो जाते हैं । इस ध्यान में स्थितिघात आदि के द्वारा सयोगि अवस्था के अन्तिम समय तक आयुकर्म के सिवाय भव का उपकार करने वाले शेष सब कर्मों का अपवर्तन करते हैं, जिससे सयोगिकेवली के अन्तिम समय में सब कर्मों की स्थिति अयोगिकेवली गुणस्थान के काल के बराबर हो जाती है । यहाँ इतनी विशेषता है कि जिन कर्मों का अयोगिकेवली के उदय नहीं होता उनकी स्थिति स्वरूप की अपेक्षा एक समय कम हो जाती है किन्तु कर्म सामान्य की
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