Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 521
________________ २२ पारिभाषिक शब्द-कोष उन्मार्ग देशना-संसार के कारणों और कार्यों का मोक्ष के कारणों के रूप में उपदेश देना; धर्म-विपरीत शिक्षा। उपकरण द्रव्येन्द्रिय-आभ्यन्तर निवृत्ति की विषय-ग्रहण की शक्ति को अथवा जो निवृत्ति का उपकार करती है, उसे उपकरण द्रव्येन्द्रिय कहते हैं। उपघात-ज्ञानियों और ज्ञान के साधनों का नाश कर देना । उपघात नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव अपने शरीर के अवयवों जैसे प्रतिजिह्वा, चोर दन्त आदि से क्लेश पाता है, वह उपघात नामकर्म कहलाता है। उपपात जन्म-उत्पत्तिस्थान में स्थित वैक्रिय पुद्गलों को पहले-पहल शरीर रूप में परिणत करना उपपात जन्म कहा जाता है। उपभोगान्तराय कर्म-उपभोग की सामग्री होते हुए भी जीव जिस कर्म के उदय से उस सामग्री का उपभोग न कर सके। उपयोग-जीव का बोध रूप व्यापार अथवा जीव का जो भाव वस्तु के ग्रहण करने के लिए प्रवृत्त होता है, जिसके द्वारा वस्तु का सामान्य व विशेष स्वरूप जाना जाता है; अथवा आत्मा के चैतन्यानविधायी परिणाम को उपयोग कहते हैं । उपयोग भावेन्द्रिय-लब्धि रूप भावेन्द्रिय के अनुसार आत्मा की विषय-ग्रहण में होने वाली प्रवृत्ति । उपरतबंधकाल-पर-भव सम्बन्धी आयुबन्ध से उत्तरकाल की अवस्था । उर्वरेणु-आठ इलक्षण-इलक्ष्णिका का एक उर्ध्वरेणु होता है। उष्णस्पर्श नामकर्म-जिस कर्म के उदय से जीव का शरीर आग जैसा उष्ण हो। उपशम-आत्मा में कर्म की निज शक्ति का कारणवश प्रगट न होना अथवा प्रदेश और विपाक दोनों प्रकार के कर्मोदय का रुक जाना उपशम है। उपशमन-कर्म की जिस अवस्था में उदय अथवा उदीरणा संभव नहीं होती है । उपशमश्रोणि-जिस श्रेणी में मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृतियों का उपशम किया जाता है। उपशान्तकषाय वीतराग छदमस्थ गुणस्थान-उन जीवों के स्वरूप विशेष को कहते हैं जिनके कषाय उपशान्त हुए हैं, राग का भी सर्वथा उदय नहीं है और छद्म (आवरण भूत घातिकर्म) लगे हुए हैं ।। उपशान्तावा-ओपशमिक सम्यक्त्व के काल को उपशान्तावा कहा जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584