Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
षष्ठ कर्म ग्रन्थ
२४५
बंघस्थान होते हैं और प्रत्येक बंधस्थान में २१, २६, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं। इनमें से २१ और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों में पांच-पांच सत्तास्थान हैं तथा शेष चार उदयस्थानों में ७८ प्रकतिक सत्तास्थान के सिवाय चार-चार सत्तास्थान हैं । ये कुल मिलाकर २६ सत्तास्थान हुए। इस प्रकार पांच बंधस्थानों के १३० भंग हुए ।
द्वीन्द्रिय पर्याप्त की तरह त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याप्त के बंधस्थान आदि जानना चाहिये तथा उनके भी १३०, १३० भङ्ग होते हैं ।
असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में भी २३, २५, २६, २६ और ३० प्रकृतिक, इन पांच बंधस्थानों में से प्रत्येक बंधस्थान में विकलेन्द्रियों की तरह छब्बीस भङ्ग होते हैं जिनका योग १३० है । परन्तु २८ प्रकृतिक बंधस्थान में ३० और ३१ प्रकृतिक ये दो उदयस्थान ही होते हैं । अतः यहां प्रत्येक उदयस्थान में ह२, ८८ और ८६ प्रकृतिक ये तीन-तीन सत्तास्थान होते हैं । इनके कुल ६ भङ्ग हुए। यहां तीन सत्तास्थान होने का कारण यह है कि २८ प्रकृतिक बंधस्थान देवगति और नरकगति के योग्य प्रकृतियों का बंध पर्याप्त के ही होता है। इसी प्रकार असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीवस्थान में १३० + ६ = १३६ भङ्ग होते हैं ।
संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के २३ प्रकृतिक बधस्थान में जैसे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के २६ सत्तास्थान बतलाये, वैसे यहां भी जानना
-
१ अष्टाविंशतिबंधकानां पुनस्तेषां द्वे एवोदयस्थाने, तद्यथा - त्रिंशदेकत्रिशच्च । तत्र प्रत्येकं त्रीणि त्रीणि सत्तास्थानानि तद्यथा — द्विनवतिः अष्टाशीतिः षडशीतिश्च । अष्टाविंशतिर्हि देवगतिप्रायोग्या नरकगतिप्रायोग्या वा, ततस्तस्यां बध्यमानायामवश्यं वैक्रियचतुष्टयादि बध्यते इत्यशीति-अष्टसप्तती न प्राप्येते । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २०५
S
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org