Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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प्रकार इन १४ सत्तास्थानों को पहले के ३० सत्तास्थानों में मिला देने पर २६ प्रकृतिक बंधस्थान में कुल ४४ सत्तास्थान होते हैं।
इसी प्रकार ३० प्रकृतिक बन्धस्थान में भी २५ प्रकृतिक बन्धस्थान के समान ३० सत्तास्थानों को ग्रहण करना चाहिए। किन्तु यहाँ भी कुछ विशेषता है कि तीर्थंकर प्रकृति के साथ मनुष्यगति के योग्य ३० प्रकृतियों का बंध होते समय २१, २५, २७, २८, २६ और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान तथा प्रत्येक उदयस्थान में ६३ और ८९ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं। जिनका कुल जोड़ १२ होता है। इन्हें पूर्वोक्त ३० में मिला देने पर ३० प्रकृतिक बंधस्थान में कुल ४२ सत्तास्थान होते हैं।
३१ प्रकृतिक बन्धस्थान में तीर्थंकर और आहारकद्विक का बन्ध अवश्य होता है । अतः यहाँ भी ६३ प्रकृतियों की सत्ता है तथा १ प्रकृतिक बंध के समय ८ सत्तास्थान होते हैं। इनमें से ६३, ६२, ८६ और ८८ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान उपशमश्रेणि में होते हैं और ८०, ७६, ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान क्षपकश्रेणि में होते हैं।
बंध के अभाव में भी संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त के पूर्वोक्त आठ सत्तास्थान होते हैं। जिनमें से प्रारम्भ के ४ सत्तास्थान उपशांतमोह ग्यारहवें गुणस्थान में प्राप्त होते हैं और अन्तिम ४ सत्तास्थान बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान में प्राप्त होते हैं। इस प्रकार संज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्त जीव के सब मिलाकर २०८ सत्तास्थान होते हैं।
द्रव्यमन के संयोग से केवली को भी संज्ञी माना जाता है। सो उनके भी २६ सत्तास्थान प्राप्त होते हैं। क्योंकि केवली के २०, २१, २६, २७, २८, २९, ३०, ३१, ६ और ८ प्रकृतिक, ये दस उदयस्थान होते हैं। इनमें से २० प्रकृतिक उदयस्थान में ७६ और ७५ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान होते हैं तथा २६ और २८ प्रकृतिक उदयस्थानों में भी यही Jain Education International For Private & Personal Use Only
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