Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
७. उपशम श्रेणि के सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में भी एक आवलिकाल शेष रहने पर सूक्ष्म लोभ का उदय ही होता है उदीरणा नहीं होती है ।
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उक्त सात अपवादों वाली ४१ प्रकृतियां हैं, जिससे ग्रंथकार में ४१ प्रकृतियों को छोड़कर शेष सब प्रकृतियों के उदय और उदीरण में स्वामित्व की अपेक्षा कोई विशेषता नहीं बतलाई है।
अब आगे की गाथा में उन ४१ प्रकृतियों को बतलाते हैं जिनके उदय और उदीरणा में विशेषता है ।
नाणंतरायदसगं
दंसणनव वेयणिज्ज मिच्छतं । सम्मत्त लोभ वेयाऽऽउगाणि नवनाम उच्चं च ॥५५॥
शब्दार्थ - नाणंतरायवसगं - ज्ञानावरण और अंतराय की दस, दंसणनय - दर्शनावरण की नो, वेयणिज्ज - वेदनीय की दो, मिच्छत्तं - मिथ्यात्व, सम्मत्त- - सम्यक्त्व मोहनीय, लोभ --संज्वलन लोभ, वेयाssउगाणि - तीन वेद और चार आयु, नवनामकी नौ प्रकृति, उच्च -- उच्चगोत्र, च
-
-नाम कर्म
- और ।
गाथार्थ --- ज्ञानावरण और अंतराय कर्म की कुल मिलाकर दस, दर्शनावरण की नौ, वेदनीय की दो, मिथ्यात्व मोहनीय, सम्यक्त्व मोहनीय, संज्वलन लोभ, तीन वेद, चार आयु, नामकर्म की नौ, और उच्च गोत्र, ये इकतालीस प्रकृतियाँ हैं, जिनके उदय और उदीरणा में स्वामित्व की अपेक्षा विशेषता है।
विशेषार्थ - गाथा में उदय और उदीरणा में स्वामित्व की अपेक्षा विशेषता वाली इकतालीस प्रकृतियों के नाम बतलाये हैं । वे इकतालीस प्रकृतियाँ इस प्रकार हैं- ज्ञानावरण की मतिज्ञानावरण आदि पाँच, अंतराय की दानान्तराय आदि पाँच तथा दर्शनावरण की
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