Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पष्ठ कर्मग्रन्थ
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उदय और उदीरणा में समान है। फिर भी दोनों में कालप्राप्त और अकालप्राप्त कर्म परमाणुओं के अनुभवन का अंतर है। अर्थात् उदय में कालप्राप्त कर्म परमाणु रहते हैं तथा उदीरणा में अकालप्राप्त कर्म परमाणु रहते हैं। तो भी सामान्य नियम यह है कि जहाँ जिस कर्म का उदय रहता है वहाँ उसकी उदीरणा अवश्य होती है।
लेकिन इसके सात अपवाद हैं। वे अपवाद इस प्रकार जानने चाहिये--- १. जिनका स्वोदय से सत्वनाश होता है उनका उदीरणा-विच्छेद
एक आवलिकाल पहले ही हो जाता है और उदय-विच्छेद एक
आवलिकाल बाद होता है। २. वेदनीय और मनुष्यायु की उदीरणा छठे प्रमत्तसंयत गुणस्थान
तक ही होती है। जबकि इनका उदय अयोगिकेवली गुणस्थान
तक होता है। ३. जिन प्रकृतियों का अयोगिकेवली गुणस्थान में उदय है,
उनकी उदीरणा सयोगिकेवली गुणस्थान तक ही होती है। ४. चारों आयुकर्मों का अपने-अपने भव की अंतिम आवलि में ___ उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ५. निद्रादि पांच का शरीरपर्याप्ति के बाद इन्द्रियपर्याप्ति
पूर्ण होने तक उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है। ६. अंतरकरण करने के बाद प्रथम स्थिति में एक आवली काल
शेष रहने पर सिथ्यात्व का, क्षायिक सम्यक्त्व को प्राप्त करने वाले के सम्यक्त्व का और उपशमश्रेणि में जो जिस वेद के उदय से उपशमश्रेणि पर चढ़ा है उसके उस वेद का उदय ही होता है, उदीरणा नहीं होती है।
१ जत्थ उदओ तत्थ उदीरणा, जत्थ उदीरणा तत्थ उदओ। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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