Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
सप्ततिका प्रकरण
―――
शब्दार्थ - उदयस्स- - उदय के, उदीरणाए - उदीरणा के, सामित्ताओं-स्वामित्व में, न विज्जइ- नहीं है, विसेसो-- विशेषता, मोत्तूण छोड़कर, यऔर, इगुयालं इकतालीस प्रकृतियों को, सेसाणं बाकी की, सब्दपगईणं--- सभी प्रकृतियों के ।
३७६
tengand
गाथार्थ - इकतालीस प्रकृतियों के सिवाय शेष सब प्रकृतियों के उदय और उदीरणा के स्वामित्व में कोई विशेषता नहीं है ।
विशेषार्थ — ग्रंथ में बन्धस्थान, उदयस्थान और सत्तास्थानों के साथ इन सबके संवेध का विचार किया गया। लेकिन उदय व उदीरणा में यथासम्भव समानता होने से उसका विचार नहीं किये जाने के कारण को स्पष्ट करने के लिये इस गाथा में बताया गया है कि उदय और उदीरणा में यद्यपि अन्तर नहीं है, लेकिन इतनी विशेषता है कि इकतालीस कर्म प्रकृतियों के उदय और उदीरणा में भिन्नता है । इसलिये उदययोग्य १२२ प्रकृतियों में से ४१ प्रकृतियों को छोड़कर शेष ८१ प्रकृतियों के उदय और उदीरणा में समानता जाननी चाहिये ।
उदय और उदीरणा के लक्षण क्रमश: इस प्रकार हैं कि कालप्राप्त कर्म परमाणुओं के अनुभव करने को उदय कहते हैं और उदयावलि के बाहर स्थित कर्म परमाणुओं को कषाय सहित या कषाय रहित योग संज्ञा वाले वीर्य विशेष के द्वारा उदयावलि में लाकर उनका उदयप्राप्त कर्म परमाणुओं के साथ अनुभव करना उदीरणा कहलाता है। इस प्रकार कर्म परमाणुओं का अनुभवन
१
इह कालप्राप्तानां परमाणूनामनुभवनमुदयः, अकालप्राप्तानामुदयावलिकाबहिः स्थितानां कषायसहितेनासहितेन वा योगसंज्ञकेन वीर्यविशेषण समाकृष्योदय प्राप्तः कर्मपरमाणुभि: सहानुभवनमुदीरणा ।
- सप्ततिका प्रकरण टीका पृ०, २४२ www.jainelibrary.org
Jain Education International
For Private & Personal Use Only