Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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है अत: उनके ८६ प्रकृतियों की सत्ता सम्भव नहीं है। इस प्रकार २८ प्रकृतिक बन्धस्थान में कुल १६ सत्तास्थान होते हैं ।
२६ प्रकृतियों का बन्ध करने वाले के ये पूर्वोक्त आठ उदयस्थान होते हैं । इनमें से २१ और २६ प्रकृतियों के उदय में ६२,८८,८६, ८०, ७८, ६३ और ८६ प्रकृतिक ये सात-सात सत्तास्थान होते हैं । यहाँ तिर्यंचगतिप्रायोग्य २६ का बन्ध करने वालों के प्रारम्भ के पाँच, मनुष्यगतिप्रायोग्य २६ का बन्ध करने वालों के प्रारम्भ के चार और देवगतिप्रायोग्य २६ का बन्ध करने वालों के अंतिम दो सत्तास्थान होते हैं । २८, २६ और ३० के उदय में ७८ के बिना पूर्वोक्त छह-छह सत्तास्थान होते हैं । ३१ के उदय में प्रारम्भ के चार और २५ तथा २७ के उदय में ६३, ६२, ८६ और ८८ प्रकृतिक, ये चार-चार सत्तास्थान होते हैं । इस प्रकार २६ प्रकृतिक बन्धस्थान में सत्तास्थान होते हैं ।
कुल ४४
३० प्रकृतियों का बन्ध करने वाले के २६ के बन्ध के समान वे ही आठ उदयस्थान और प्रत्येक उदयस्थान में उसी प्रकार सत्तास्थान होते हैं । किन्तु यहाँ इतनी विशेषता है कि २१ के उदय में पहले पाँच सत्तास्थान तिर्यंचगतिप्रायोग्य ३० का बन्ध करने वाले के होते हैं और अंतिम दो सत्तास्थान मनुष्यगतिप्रायोग्य ३० का बन्ध करने वाले देवों के होते हैं तथा २६ के उदय में ६३ और १६ प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान नहीं होते हैं, क्योंकि २६ का उदय तिर्यंच और मनुष्यों के अपर्याप्त अवस्था में होता है परन्तु उस समय देवगतिप्रायोग्य या मनुष्यगतिप्रायोग्य ३० का बन्ध नहीं होता है, जिससे यहाँ ६३ और ८ की सत्ता प्राप्त नहीं होती है। इस प्रकार ३० प्रकृतिक बन्धस्थान में कुल ४२ सत्तास्थान प्राप्त होते हैं ।
३१ और १ प्रकृति का बन्ध करने वाले के उदयस्थानों और सत्तास्थानों का संवेध मनुष्यगति के समान जानना चाहिये ।
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