Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
स्त्रीवेद के साथ सम्यग्दृष्टियों का उत्पाद देखा जाता है । इसी बात को चूर्ण में भी स्पष्ट किया है
कयाइ होज्ज इत्थिवेयगेसु बि ।
अर्थात् --- कदाचित सम्यग्दृष्टि जीव स्त्रीवेदियों में भी उत्पन्न होता है । तथा चौथे गुणस्थान के औदारिकमिश्र काययोग में स्त्रीवेद. और नपुंसक वेद नहीं होता है। क्योंकि स्त्रीवेदी और नपुंसकवेदी तिर्यंच और मनुष्यों में अविरत सम्यग्दृष्टि जीव उत्पन्न नहीं होते हैं, अतः औदारिक मिश्र काययोग में भंगों की ८ चौबीसी प्राप्त न होकर आठ अष्टक प्राप्त होते हैं। स्त्रीवेदी और नपुंसक वेदी सम्यग्दृष्टि जीव औदारिकमिश्र काययोगी नहीं होता है । यह बहुलता की अपेक्षा से समझना चाहिए । इस प्रकार अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में दस योगों की ८० चौबीसी, वैक्रियमिश्र काययोग और कार्मण काययोग, इन दोनों में प्रत्येक के आठ-आठ षोडशक और औदारिकमिश्र काययोग के आठ अष्टक होते हैं । जिनके भंग ८० X २४ = १९२० तथा १६×८= १२८ पुनः १६x८ = १२८ और ८८ = ६४ होते हैं, इनका कुल जोड़
१ (क) ये चाविरतसम्यग्दृष्टेर्वे क्रियमिश्र कार्मणकाययोगे च प्रत्येकमष्टावष्टी उदयस्थानविकल्पा एषु स्त्रीवेदो न लभ्यते, वैक्रिय काययोगिषु स्त्रीवेदिषु मध्येऽविरत सम्यग्दृष्टे रुत्पादाभावत् । एतच्च प्रायोवृत्तिमाश्रित्योक्तम्, अन्यथा कदाचित् स्त्रीवेदिष्वपि मध्ये तदुत्पादो भवति । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २१७ ( ख ) दिगम्बर परम्परा में यही एक मत मिलता है कि स्त्रीवेदियों में सम्यग्दृष्टि जीव मरकर उत्पन्न नहीं होता है ।
२ अविरतसम्यग्दृष्टेरौदारिक मिश्रकाययोगे येऽष्टावुदय स्थानविकल्पास्ते पुंवेदसहिता एव प्राप्यन्ते, न स्त्रीवेद-नपुंसकवेदसहिताः तिर्यग्-मनुष्येषु स्त्रीवेदनपुंसकवेदिषु मध्येऽविरत सम्यग्दृष्टे रुत्पादाभावत्, एतच्च प्राचुर्य- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २१७
माश्रित्योक्तम् ।
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