Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३३५ उदय गुणप्रत्यय से ही नहीं होता है अतः तत्संबंधी विकल्पों को यहाँ नहीं कहा है।
३१ प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंचों के ही होता है। यहाँ भी १४४ भंग होते हैं। इस प्रकार देशविरत में सब उदयस्थानों के कुल भंग १०+१४४+१४४+१४४+१-४४३ भंग होते हैं।
__यहाँ सत्तास्थान चार होते हैं जो ६३, ६२, ८६ और ८८ प्रकृतिक हैं। जो तीर्थंकर और आहारक चतुष्क का बंध करके देशविरत हो जाता है, उनके ६३ प्रकृतियों की सत्ता होती है तथा शेष का विचार . सुगम है। इस प्रकार देशविरत में बंध, उदय और सत्ता स्थानों का कथन किया। अब इनके संवेध का विचार करते हैं कि
यदि देशविरत मनुष्य २८ प्रकृतियों का बंध करता है तो उसके २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान और इनमें से प्रत्येक में ६२ और ८८ प्रकृतिक ये दो सत्तास्थान होते हैं । किन्तु यदि तिर्यंच २८ प्रकृतियों का बंध करता है तो उसके उक्त पाँच उदयस्थानों के साथ ३१ प्रकृतिक उदयस्थान भी होने से छह उदयस्थान तथा प्रत्येक में ६२ और ८८ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। २६ प्रकृतिक बंधस्थान देशविरत मनुष्य के होता है। अत: इसके पूर्वोक्त २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान और प्रत्येक उदयस्थान में ६३ ओर ८६ प्रकृतिक, ये दो-दो सत्तास्थान होते हैं। इस प्रकार देशविरत गुणनस्थान में सामान्य से प्रारम्भ के पाँच उदयस्थानों में चार-चार और अन्तिम उदयस्थान में दो, इस प्रकार कुल मिलाकर २२ सत्तास्थान होते हैं।
देशविरत गुणस्थान के बंध आदि स्थानों का विवरण इस प्रकार जानना चाहिए
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