Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
उदयस्थान
भंग
सत्तास्थान
बंधस्थान मंग
२६ । ६२१६ प्रकृतिक
६२,८८ ६२,८८ ६२, ८८ ६२, ८८ ६२, ८८ ६२, ८८
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३० प्रकृतिक
। ४६१६
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६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६,८८ ६३, ६२, ८६, ८८ ६३, ६२, ८६, ८८
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इस प्रकार से गतिमार्गणा में बंध, उदय और सत्ता स्थान तथा उनके संवेध का कथन करने के बाद अब आगे की गाथा में इन्द्रियमार्गणा में बंध आदि स्थानों का निर्देश करते हैं
इग विलिदिय सगले पण पंच य अट्ट बंधठाणाणि । पण छक्केक्कारुदया पण पण बारस य संताणि ॥५२॥
१ तुलना कीजिये(क) इगि विगले पण बंधो अडवीसूणा उ अट्ठ इयरंमि । पंच छ एक्कारुदया पण पण बारस उ संताणि ।।
-पंचसंग्रह सप्ततिका गा० १३० (ख) एगे वियले सयले पण पण अड पंच छक्केगार पणं । पणतेरं बंधादी सेसादेसेवि इदि णेयं ॥
-गो० कर्मकांड गा० ७११ कर्म ग्रंथ में पंचेन्द्रियों के १२ सत्तास्थान और गो० कर्मकांड में १३ सत्ता
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