Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
३१७ अपेक्षा जानना चाहिये । ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और तिर्यंच पंचेन्द्रियों की अपेक्षा जानना चाहिये। २४ प्रकृतिक उदयस्थान में ८६ प्रकृतिक को छोड़कर शेष ५ सत्तास्थान हैं । जो सब एकेन्द्रियों की अपेक्षा जानना चाहिये, क्योंकि एकेन्द्रियों को छोड़कर शेष जीवों के २४ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता है। २५ प्रकृतिक उदयस्थान में पूर्वोक्त छहों सत्तास्थान होते हैं। इनका विशेष विचार २१ प्रकृतिक उदयस्थान के समान जानना चाहिये । २६ प्रकृतिक उदयस्थान में ८९ को छोड़कर शेष पांच सत्तास्थान होते हैं। यहाँ ८९ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होने का कारण यह है कि मिथ्यात्व गुणस्थान में उस जीव के यह सत्तास्थान होता है जो नारकों में उत्पन्न होने वाला है किन्तु नारकों के २६ प्रकृतिक उदयस्थान नहीं होता है । २७ प्रकृतिक उदयस्थान में ७८ के बिना शेष पाँच सत्तास्थान होते हैं। ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान होने सम्बन्धी विवेचन तोपूर्ववत् जानना चाहिये तथा ६२ और ८८ प्रकृतिक सत्तास्थान देव, नारक, मनुष्य, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और एकेन्द्रियों की अपेक्षा जानना चाहिये । ८६ और ८० प्रकृतिक सत्तास्थान एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों की अपेक्षा जानना चाहिये । यहाँ जो ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं बताया है, उसका कारण यह है कि २७ प्रकृतिक उदयस्थान अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों को छोड़कर आतप या उद्योत के साथ अन्य एकेन्द्रियों के होता है या नारकों के होता है किन्तु उनमें ७८ प्रकृतियों की सत्ता नहीं पाई जाती है । २८ प्रकृतिक उदयस्थान में ये ही पाँच सत्तास्थान होते हैं। सो इनमें ९२, ८६ और ८८ प्रकृतिक सत्तास्थानों का विवेचन पूर्ववत् है तथा ८६ और ८० प्रकृतिक, ये दो सत्तास्थान विकलेन्द्रियों, तिर्यंच पंचेन्द्रियों और मनुष्यों के जानना चाहिये । २६ प्रकृतिक उदयस्थान में भी इसी प्रकार पाँच सत्तास्थान जानना चाहिये। ३० प्रकृतिक Jain Education International For Private & Personal Use Only
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