Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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२८ और २६ प्रकृतिक उदय चारों गतियों के अविरत सम्यग्दृष्टि जीवों के होता है। ३० प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंच पंचेन्द्रिय, मनुष्य और देवों के होता है तथा ३१ प्रकृतिक उदयस्थान तिर्यंच पंचेन्द्रियों के ही होता है। इस प्रकार से अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में ८ उदयस्थान जानना चाहिये ।
अब सत्तास्थानों का निर्देश करते हैं
अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में ९३, ६२, ८६ और ८८ प्रकृतिक, ये चार सत्तास्थान हैं। इनमें से जिस अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण गुणस्थानवर्ती जीव ने तीर्थंकर और आहारक के साथ ३१ प्रकृतियों का बंध किया और पश्चात् मरकर अविरत सम्यग्दृष्टि हो गया तो उसके ९३ प्रकृतियों की सत्ता होती है। जिसने पहले आहारक चतुष्क का बंध किया और उसके बाद परिणाम बदल जाने से मिथ्यात्व में जाकर जो चारों गतियों में से किसी एक गति में उत्पन्न हुआ उसके उस गति में पुन: सम्यग्दर्शन के प्राप्त हो जाने पर ६२ प्रकृतिक सत्तास्थान चारों गतियों में बन जाता है। किन्तु देव और मनुष्यों के मिथ्यात्व को प्राप्त किये बिना ही इस अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में ९२ प्रकृतियों की सत्ता बन जाती है । ८६ प्रकृतिक सत्तास्थान अविरत सम्यग्दृष्टि देव, नारक और मनुष्यों के होता है । क्योंकि इन तीनों गतियों में तीर्थंकर प्रकृति का समार्जन होता रहता है। किन्तु तीर्थंकर प्रकृति की सत्ता वाला जीव तिर्यंचों में उत्पन्न नहीं होता है अत: यहाँ तिर्यंचों का ग्रहण नहीं किया है, और ८८ प्रकृतिक सत्तास्थान चारों गतियों के अविरत सम्यग्दृष्टि जीवों के होता है । इस प्रकार अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में बंध, उदय और सत्ता स्थानों को जानना चाहिये ।
अब इनके संवेध का विचार करते हैं कि २८ प्रकृतियों का बंध करने वाले अविरत सम्यग्दृष्टि जीव के तिर्यंच और मनुष्यों की अपेक्षा
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