Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
षष्ठ कर्मग्रन्थ
गुणस्थान
मिथ्यात्व
सासादन
मिश्र
अविरत
देशविरत
प्रमत्तविरंत
अप्रमत्तविरत
अपूर्वकरण
अनिवृत्तिबादर
सूक्ष्मसंपराय
उपयोग
५
५
૭
७
७
७
७
उदयपद
६८
३२
३२
६०
५२
४४
४४
२०
१
गुणकार
२४
२४
२४
२४
२४
२४
२४
२४
१२
१
गुणनफल ( पदवृन्द )
८ १६०
३८४०
३८४०
८६४०
७४८८
२६६
७३६२
७३६२
३३६०
१६८
२८
. ५०३१५ पदवृन्द
इसमें मिश्र गुणस्थान संबंधी अवधिदर्शन के ७६८ भंगों को और मिला दिया जाये तो उस अपेक्षा से कुल पदवृन्द ५१०८३ होते है ।
इस प्रकार से उपयोगों की अपेक्षा उदयस्थान पदवृन्दों का वर्णन करने के बाद अब लेश्याओं की अपेक्षा उदयस्थान विकल्पों और पदवृन्दों का विचार करते हैं। पहले उदयस्थान विकल्पों को बतलाते हैं।
मिथ्यात्व से लेकर अविरत सम्यग्दृष्टि, इन चार गुणस्थानों तक प्रत्येक स्थान में छहों लेश्यायें होती हैं । देशविरत, प्रमत्तसंयत और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org