Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
का दूसरा भङ्ग प्राप्त होता है। इस प्रकार क्षीणमोह गुणस्थान में भी दो भंग प्राप्त होते हैं ।
इस प्रकार से ज्ञानावरण, अंतराय और दर्शनावरण कर्म की उत्तर प्रकृतियों के गुणस्थानों में बंध, उदय और सत्ता स्थानों को बतलाने के बाद अब वेदनीय, आयु और गोत्र कर्मों के भंगों को बतलाते हैं ।
वेयणियाउयगोए विभज्ज मोहं परं वोच्छं ॥ ४१ ॥
शब्दार्थ - वेयणियाउयगोए - वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के, विभज्ज - विभाग करके, मोहं - मोहनीय कर्म के, परं - इसके बाद, वच्छं – कहेंगे ।
गाथार्थ - वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के भंगों का कथन करने के बाद मोहनीय कर्म के भंगों का कथन करेंगे ।
विशेषार्थ - गाथा में वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के भंगों के विभाग करने की सूचना दी है किन्तु उनके कितने-कितने भंग होते हैं यह नहीं बतलाया है । अत: आचार्य मलयगिरि की टीका में भाष्य की गाथाओं के आधार पर वेदनीय, आयु और गोत्र कर्म के जो भंगविकल्प बतलाये हैं, उनको यहाँ स्पष्ट करते हैं ।
भाष्य की गाथा में वेदनीय और गोत्र कर्म के भङ्गों का निर्देश इस प्रकार किया गया है
चउ छस्सु दोणि सत्तसु एगे चउ गुणिसु वेयणियभंगा । गोए पण चउ दो तिसु एगट्ठलु दोण्णि एक्कम्मि ||
अर्थात् वेदनीय कर्म के छह गुणस्थानों में चार, सात में दो और एक में चार भङ्ग होते हैं तथा गोत्रकर्म के पहले में पाँच, दूसरे में चार, तीसरे आदि तीन में दो, छठे आदि आठ में एक और एक में एक भङ्ग होता है जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है ।
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