Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण स्थानों के विकल्पों को बतलाने के बाद अब चौदहवें गुणस्थान के भङ्गों को बतलाने के लिये कहते हैं कि 'एगे चउ' अर्थात् एक गुणस्थान-चौदहवें अयोगिकेवली गुणस्थान में चार भङ्ग होते हैं। क्योंकि अयोगिकेवली गुणस्थान में साता वेदनीय का भी बंध नहीं होता है, अतः वहाँ बंध की अपेक्षा तो कोई भङ्ग प्राप्त नहीं होता है किन्तु उदय और सत्ता की अपेक्षा भङ्ग बनते हैं। फिर भी जिसके इस गुणस्थान में असाता का उदय है, उसके उपान्त्य समय में साता की सत्ता का नाश हो जाने से तथा जिसके साता का उदय है उसके उपान्त्य समय में असाता की सत्ता का नाश हो जाने से उपान्त्य समय तक--१. साता का उदय और साता-असाता की सत्ता, २. असाता का उदय और साता-असाता की सत्ता, ये दो भङ्ग प्राप्त होते हैं । तथा अंतिम समय में, ३. साता का उदय और साता की सत्ता तथा ४. असाता का उदय और असाता की सत्ता, यह दो भङ्ग प्राप्त होते हैं। इस प्रकार अयोगिकेवली गुणस्थान में वेदनीय कर्म के चार भंग बनते हैं।
अब गोत्रकर्म के भंगों को गुणस्थानों में बतलाते हैं।
गोत्रकर्म के बारे में भी वेदनीय कर्म की तरह एक विशेषता तो यह है कि साता और असाता वेदनीय के समान उच्च और नीच गोत्र बंध और उदय की अपेक्षा प्रतिपक्षी प्रकृतियाँ हैं, एक काल में इन दोनों में से किसी एक का बंध और एक का ही उदय हो सकता है, लेकिन
१ 'एकस्मिन्' अयोगिकेवलिनि चत्वारो भंगा, ते चेमे-असातस्योदयः
सातासाते सती, अथवा सातस्योदय: सातासाते सती, एतौ, द्वौ विकल्पावयोगिकेवलिनि द्विचरमसमयं यावत्प्राप्येते, चरमसमये तु असातस्योदयः असातस्य सत्ता यस्य द्विचरम-समये सातं क्षीणम्, यस्य त्वसातं द्विचरम समये क्षीणं तस्यायं विकल्प:-सातस्योदयः सातस्य सत्ता।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २०६
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