Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में आयुकर्म के २८ भंग होते हैं। क्योंकि चारों गतियों के जीव मिथ्यादृष्टि भी होते हैं और नारकों के पाँच, तिर्यंचों के नौ, मनुष्यों के नौ और देवों के पांच, इस प्रकार आयुकर्म के २८ भंग पहले बतलाये गये हैं। अत: वे सब भंग मिथ्या दृष्टि गुणस्थान में संभव होने से २८ भंग मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में कहे हैं ।
सासादन गुणस्थान में २६ भंग होते हैं। क्योंकि नरकायु का बंध मिथ्यात्व गुणस्थान में ही होने से सासादन सम्यग्दृष्टि तिर्यंच और मनुष्य नरकायु का बंध नहीं करते हैं । अतः उपर्युक्त २८ भंगों में से१ भुज्यमान तिर्यंचायु, बध्यमान नरकायु और तिर्यंच-नरकायु की सत्ता, तथा भुज्यमान मनुष्यायु बध्यमान नरकायु और मनुष्य-नरकायु की सत्ता, ये दो भंग कम होने जाने से सासादन गुणस्थान में २६ भंग प्राप्त होते हैं। __ तीसरे मिश्र गुणस्थान में परभव संबंधी आयु के बंध न होने का नियम होने से परभव संबंधी किसी भी आयु का बन्ध नहीं होता है । अतः पूर्वोक्त २८ भंगों में से बंधकाल में प्राप्त होने वाले नारकों के दो, तिर्यंचों के चार, मनुष्यों के चार और देवों के दो, इस प्रकार २+४+४+२=१२ भंगों को कम कर देने पर १६ भंग प्राप्त होते हैं। ___चौथे अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में २० भंग होते हैं। क्योंकि अविरत सम्यग्दृष्टि गुणस्थान में तिथंचों और मनुष्यों में से प्रत्येक के नरक, तिर्यंच और मनुष्य आयु का बन्ध नहीं होने से तीन-तीन भंग
१ यतस्तियंचो मनुष्या वा सासादनमावे वर्तमाना नरकायुर्न बघ्नन्ति, ततः
प्रत्येक तिरश्चां मनुष्याणां च परमवायुबन्धकाले एकैको भंगो न प्राप्यत इति षड्विंशतिः ।
--सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org