Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
२५.५
प्रकृतिक बन्ध, पाँच प्रकृतिक उदय और पाँच प्रकृतिक सत्ता, ये तीनों प्राप्त होते हैं । " लेकिन दसवें गुणस्थान में इन दोनों का बन्धविच्छेद हो जाने से उपशांतमोह और क्षीणमोह - ग्यारहवें और बारहवें गुणस्थान में पाँच प्रकृतिक उदय और पाँच प्रकृतिक सत्ता ये दो ही प्राप्त होते हैं । बारहवें गुणस्थान से आगे तेरहवे, चौदहवें गुणस्थान में इन दोनों कर्मों के बन्ध, उदय और सत्ता का अभाव हो जाने से बंध, उदय और सत्ता में से कोई भी नहीं पाई जाती है ।
ज्ञानावरण और अंतराय कर्म के बंधादि स्थानों को बतलाने के बाद अब दर्शनावरण कर्म के भंगों का कथन करते हैं ।
मिच्छासाणे बिइए नव चउ पण नव य संतंसा ॥ ३६ ॥ मिस्साइ नियट्टीओ छ चचउ पण नव य संतकम्मंसा । चउबंध तिगे चउ पण नवंस दुसु जुयल छ स्संता ॥४०॥ उवसंते चउ पण नव खीणे चउरुदय छच्च चउ संतं ।
शब्दार्थ - मिच्छासाणे - मिथ्यात्व और सासादन गुणस्थान में, fast - दूसरे कर्म के, नव-नो, चउ पण — चार या पांच नव नो, य- - और, संतंसा --- सत्ता ।
मिस्साइ -- मिश्र गुणस्थान से लेकर, नियट्टीओ - अपूर्वकरण गुणस्थान तक, छ च्चउ पण - छह, चार या पांच, नव-नौ, य और, संतकम्मंसा सत्ता प्रकृति, चउबंध -चार का बंध, तिगे
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१ मिथ्यादृष्ट्यादिषु दशसु गुणस्थानकेषु ज्ञानावरणस्यान्तरायस्य च पंचविधो बंध: पंचविध उदयः पंचविधा सत्ता इत्यर्थः ।
- सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २०७ २ बन्धाभावे उपशान्तमोहे क्षीणमोहे च ज्ञानावरणीयाऽन्तराययोः प्रत्येकं पंचविध उदयः पंचविधा च सत्ता भवतीति, परत उदय - सत्तयोरप्यभावः । - सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० २०७
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