Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
भंगों को अयश:कीर्ति के साथ कहना चाहिये जिससे चार भंग होते हैं तथा बादर पर्याप्त को यश:कीर्ति के साथ कहने पर एक भंग और होता है । इस प्रकार कुल पांच भंग होते हैं । यद्यपि उपर्युक्त २१ प्रकृतियों में विकल्परूप तीन युगल होने के कारण २x२x२-८ भंग होते हैं। किन्तु सूक्ष्म और अपर्याप्त के साथ यश:कीर्ति का उदय नहीं होता है, जिससे तीन भंग कम हो जाते हैं । भव के अपान्तराल में पर्याप्तियों का प्रारम्भ ही नहीं होता, फिर भी पर्याप्त नामकर्म का उदय पहले समय से ही हो जाता है और इसलिये अपान्तराल में विद्यमान ऐसा जीव लब्धि से पर्याप्तक ही होता है, क्योंकि उसके
आगे पर्याप्तियों की पूर्ति नियम से होती है। ___इन इक्कीस प्रकृतियों में औदारिक शरीर, हुंडसंस्थान, उपघाततथा प्रत्येक और साधारण इनमें से कोई एक, इन चार प्रकृतियों को मिलाने पर तथा तिर्यंचानुपूर्वी प्रकृति को कम कर देने से शरीरस्थ एकेन्द्रिय जीव के चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ पूर्वोक्त पांच भंगों को प्रत्येक और साधारण से गुणा कर देने पर दस भंग होते हैं तथा वायुकायिक जीव के वैक्रिय शरीर को करते समय औदारिक शरीर के स्थान पर वैक्रिय शरीर का उदय होता है, अत: इसके वैक्रिय शरीर के साथ भी चौबीस प्रकृतियों का उदय और इसके केवल वादर, पर्याप्त, प्रत्येक और अयश:कीर्ति, ये प्रकृतियाँ ही कहना चाहिये, इसलिये इसकी अपेक्षा एक भंग हुआ। तेजस्कायिक और वायुकायिक जीव के साधारण और यशःकीति का उदय नहीं होता अत: वायुकायिक को इनकी अपेक्षा भंग नहीं बताये हैं । इस प्रकार चौबीस प्रकृतिक उदयस्थान में कुल ग्यारह भंग होते हैं। ___अनन्तर शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हो जाने के बाद २४ प्रकृतिक उदयस्थान के साथ पराघात प्रकृति को मिला देने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ बादर के प्रत्येक और साधारण तथा यश:
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