Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
१९०
सप्ततिका प्रकरण
विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में यह बतलाया गया है कि किस बंधस्थान में कितने उदयस्थान और कितने सत्तास्थान होते हैं। लेकिन यह ज्ञात नहीं होता है कि वे उदय और सत्तास्थान कितनी प्रकृति वाले हैं और कौन-कौनसे हैं। अत: इस बात को आचार्य मलयगिरि कृत टीका के आधार से स्पष्ट किया जा रहा है।
तेईस, पच्चीस और छब्बीस प्रकृतिक बंधस्थानों में से प्रत्येक में नौ उदयस्थान और पाँच सत्तास्थान हैं--'नव पंचोदय संत्ता......। इनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-तेईस प्रकृतिक बंधस्थान में अपर्याप्त एकेन्द्रिय योग्य प्रकृतियों का बंध होता है और इसको एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य बांधते हैं। इन तेईस प्रकृतियों को बाँधने वाले जीवों के सामान्य से २१, २४, २५, २६, २७, २८, २९, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये नौ उदयस्थान होते हैं । इन उदयस्थानों को इस प्रकार घटित करना चाहिये-जो एकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्य तेईस प्रकृतियों का बंध कर रहा है, उसको भव के अपान्तराल में तो २१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। क्योंकि २१ प्रकृतियों के उदय में अपर्याप्त एकेन्द्रिय के योग्य २३ प्रकृतियों का बंध सम्भव है। ____२४ प्रकृतिक उदयस्थान अपर्याप्त और पर्याप्त एकेन्द्रियों के होता है। क्योंकि यह उदयस्थान एकेन्द्रियों के सिवाय अन्यत्र नहीं पाया जाता है। २५ प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त एकेन्द्रियों और वैक्रिय शरीर को प्राप्त मिथ्यादृष्टि तिर्यंच और मनुष्यों के होता है। २६ प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त एकेन्द्रिय तथा पर्याप्त और अपर्याप्त द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, तिर्यंच पंचेन्द्रिय और मनुष्यों के होता है। २७ प्रकृतिक उदयस्थान पर्याप्त एकेन्द्रियों और वैक्रिय शरीर को करने वाले तथा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए मिथ्यादृष्टि तिर्यंच
और मनुष्यों के होता है। २८, २९, ३० प्रकृतिक, ये तीन उदयस्थान Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org