Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
View full book text
________________
षष्ठ कर्मग्रन्थ
२०१
के २१ प्रकृतियों के उदय में ७, चौबीस प्रकृतियों के उदय में ५, पच्चीस प्रकृतियों के उदय में ७, छब्बीस प्रकृतियों के उदय में ५, सत्ताईस प्रकृतियों के उदय में ६, अट्ठाईस प्रकृतियों के उदय में ६, उनतीस प्रकृतियों के उदय में ६, तीस प्रक तियों के उदय में ६ और इकत्तीस प्रकृतियों के उदय में ४ सत्तास्थान होते हैं। जिनका कुल जोड़ ७+ ५+७+५+६+६+६+६+४=५२ होता है। ___ अब ३१ प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थान और सत्तास्थान का विचार करते हैं । ३१ प्रकृतिक बंधस्थान में 'एगेगमेगतीसे-एक उदयस्थान और एक सत्तास्थान होता है। उदयस्थान ३० प्रकृतिक और सत्तास्थान ६३ प्रकृतिक है। वह इस प्रकार समझना चाहिए कि तीर्थंकर और आहारक सहित देवगति योग्य ३१ प्रकृतियों का बंध अप्रमत्तसंयत और अपूर्वकरण, इन दो गुणस्थानों में होता है। परन्तु इनके न तो विक्रिय होती है और न आहारक समुद्घात ही होता है। इसलिये यहाँ २५ प्रकृतिक आदि उदयस्थान न होकर एक ३० प्रकृतिक उदयस्थान ही होता है । चूँकि इनके आहारक और तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है, इसलिये यहां एक ६३ प्रकृतिक ही सत्तास्थान होता है । इस प्रकार ३१ प्रकृतिक बंधस्थान में ३० प्रकृतिक उदयस्थान और ६३ प्रकृतिक सत्तास्थान माना गया है।
अब एक प्रकृतिक बंधस्थान में उदयस्थान और सत्तास्थानों का विचार करते हैं । एक प्रकृतिक बंधस्थान के उदयस्थान और सत्तास्थानों की संख्या बतलाने के लिये गाथा में संकेत है कि “एगे एगुदय अट्ठसंतम्मि"-अर्थात्-उदयस्थान एक है और सत्तास्थान आठ हैं। उदयस्थान ३० प्रकृतिक है और आठ सत्तास्थान ६३, ६२, ८६, ८८, ८०, ७६, ७६ और ७५ प्रकृतिक हैं। जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-एक प्रकृतिक बंधस्थान में एक यशःकीर्ति प्रकृति का बंध होता Jain Education International For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org