Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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वाला एक-एक भङ्ग, इस प्रकार इन आठ भङ्गों में से प्रत्येक में उपर्युक्त पाँचों सत्तास्थान होते हैं किन्तु शेष २१ में से प्रत्येक भङ्ग में ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान को छोड़कर शेष चार-चार सत्तास्थान होते हैं ।
अब गाथा में किये गये निर्देशानुसार पर्याप्त विकलेन्द्रियों में बंधादि स्थानों और उनके यथासम्भव भङ्गों को बतलाते हैं । गाथाओं में निर्देश है 'पण छप्पणगं विगलिदिया उ तिन्नि उ' । अर्थात् विकलत्रिक - द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय पर्याप्तों में पाँच बंधस्थान, छह उदयस्थान और पाँच सत्तास्थान हैं । जिनका स्पष्टीकरण इस प्रकार है कि - विकलेन्द्रिय पर्याप्त जीव भी तिर्यंचगति और मनुष्यगति के योग्य प्रकृतियों का ही बंध करते हैं। अतः इनके भी २३, २५, २६, २९ और ३० प्रकृतिक, ये पाँच बंधस्थान होते हैं और तदनुसार इनके कुल भङ्ग १३९१७ होते हैं ।
उदयस्थानों की अपेक्षा विचार करने पर यहाँ २१, २६, २८, २६, ३० और ३१ प्रकृतिक, ये छह उदयस्थान होते हैं । इनमें से २१ प्रकृतिक उदयस्थान में – तैजस, कार्मण, अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, वर्णचतुष्क, निर्माण, तिर्यंचगति, तिर्यंचानुपूर्वी, द्वीन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, दुर्भग, अनादेय और यशः कीर्ति व अयशः कीर्ति में से कोई एक - इस प्रकार २१ प्रकृतियों का उदय होता है जो अपान्तराल गति में पाया जाता है। इसके यशः कीर्ति और अयशःकीर्ति के विकल्प से दो भङ्ग होते हैं ।
अनन्तर शरीरस्थ जीव की अपेक्षा २१ प्रकृतिक उदयस्थान में औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, हुंडसंस्थान, सेवार्त संहनन, उपघात और प्रत्येक, इन छह प्रकृतियों को मिलाने तथा तिर्यंचानुपूर्वी को कम करने से २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यहाँ भी २१ प्रकृतिक उदयस्थान की तरह दो भङ्ग जानना चाहिये ।
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