Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पष्ठ कर्मग्रन्थ
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में से किसी एक का उदय होने के कारण २x२x२=८ भङ्ग होते हैं। ___अनन्तर शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के पराघात और प्रशस्त विहायोगति इन दो प्रकृतियों को २५ प्रकृतिक उदयस्थान में मिला देने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है, यहाँ भी पूर्ववत् आठ भङ्ग होते हैं।
उक्त २७ प्रकृतिक उदयस्थान में प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ वास प्रकृति को मिला देने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी पहले के समान आठ भङ्ग होते हैं। अथवा शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के यदि उद्योत का उदय हो तो भी २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है, यहाँ भी आठ भङ्ग होते हैं। इस प्रकार २८ प्रकृतिक उदयस्थान के सोलह भङ्ग होते हैं।
अनन्तर भाषा पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ वास सहित २८ प्रकृतियों में सुस्वर के मिलाने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यहाँ भी आठ भङ्ग होते हैं। अथवा प्राणापान पर्याप्ति से पर्याप्त हुए जीव के उच्छ वास सहित २८ प्रकृतियों में उद्योत को मिलाने पर भी २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसके भी आठ भङ्ग होते हैं। इस प्रकार २६ प्रकृतिक उदयस्थान के कुल सोलह भङ्ग होते हैं। ___ अनन्तर सुस्वर सहित २६ प्रकृतिक उदयस्थान में उद्योत को मिलाने पर ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । इसके भी आठ भङ्ग होते हैं।
इस प्रकार वैक्रिय शरीर को करने वाले पंचेन्द्रिय तिर्यंचों के कुल उदयस्थान २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक और उनके कुल भङ्ग ८+८+१६+१६+८=५६ होते हैं। इन ५६ भङ्गों को पहले के सामान्य पंचेन्द्रिय तिर्यंच के ४६०६ भङ्गों में मिलाने पर सब तिर्यंचों के कुल उदयस्थानों के ४६६२ भङ्ग होते हैं।
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