Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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पष्ठ कर्मग्रन्थ
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चतुष्क की उद्वलना करने पर ८४ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । इन ८४ प्रकृतियों में से मनुष्यद्विक की उद्वलना होने पर ८२ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है।
क्षपक अनिवृत्तिकरण के ६३ प्रकृतियों में से नरकद्विक आदि तेरह प्रकृतियों का क्षय होने पर ८० प्रकृतिक सत्तास्थान होता है तथा ९२ प्रकृतियों में से उक्त १३ प्रकृतियों का क्षय होने पर ७६ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है तथा इन्हीं १३ प्रकृतियों को ६१ प्रकृतियों में से कम करने पर ७८ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। ६० में से इन्हीं १३ प्रकृतियों को घटाने पर ७७ प्रकृतिक सत्तास्थान होता है। तीर्थंकर अयोगिकेवली के १० प्रकृतिक तथा सामान्य केवली के है प्रकृतिक सत्तास्थान होता है।
___ इस प्रकार से नामकर्म के सत्तास्थान को बतलाने के पश्चात् अब आगे की गाथा में नामकर्म के बंधस्थान आदि के परस्पर संवेष का कथन करने का निर्देश करते हैं।
अट्ट य बारस बारस बंधोदयसंतपयडिठाणाणि । ओहेणादेसेण य जत्थ जहासंभवं विभजे ॥३०॥
शब्दार्थ-अट्ठ-आठ, य-और, बारस-बारस-बारह, बारह, बंधोक्यसंतपयडिठाणाणि-बंध, उदय और सत्ता प्रकृतियों के स्थान, ओहेण-ओघ, सामान्य से, आवेसेण-विशेष से, य-और, जत्थ-जहाँ, जहभासंवं-यथासंभव, विभजे-विकल्प करना चाहिए।
गाथार्थ-नामकर्म के बंध, उदय और सत्ता प्रकृति स्थान क्रम से आठ, बारह और बारह होते हैं । उनके ओघ
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