Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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सप्ततिका प्रकरण
इस प्रकार वैक्रिय शरीर करने वाले मनुष्यों के २५, २७, २८, २६ और ३० प्रकृतिक, पाँच उदयस्थान होते हैं और इन उदयस्थानों के क्रमशः ८+८+६+६+१ = कुल ३५ भङ्ग होते हैं ।"
आहारक संयत- आहारक संयतों के २५, २७, २८, २६, और ३० प्रकृतिक, ये पाँच उदयस्थान होते हैं ।
पहले मनुष्यगति के उदययोग्य २१ प्रकृतियाँ बतलाई गई हैं, उनमें आहारक शरीर, आहारक अंगोपाग, समचतुरस्र संस्थान, उपघात और प्रत्येक, इन पांच प्रकृतियों को मिलाने तथा मनुष्यानुपूर्वी को कम करने पर २५ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। आहारक शरीर के समय प्रशस्त प्रकृतियों का ही उदय होता है, क्योंकि आहारक संयतों के अप्रशस्त प्रकृतियों - दुर्भग दुस्वर और अयशःकीर्ति प्रकृति का उदय नहीं होता है। इसलिए यहाँ एक ही भङ्ग होता है ।
अनन्तर उक्त २५ प्रकृतिक उदयस्थान में शरीर पर्याप्ति से पर्याप्त
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१ गो० कर्मकांड में वैक्रिय शरीर और वैक्रिय अंगोपांग का उदय देव और नारकों को बतलाया है, मनुष्यों और तिर्यंचों को नहीं । अतएव वहाँ वैक्रिय शरीर की अपेक्षा से मनुष्यों के २५ आदि प्रकृतिक उदयस्थान और उनके भंगों का निर्देश नहीं किया है । इसी कारण से वहाँ वायुकायिक और पंचेन्द्रिय तिर्यंच के भी वैक्रिय शरीर की अपेक्षा उदयस्थानों और उनके भंगों को नहीं बताया । यद्यपि इस सप्ततिका प्रकरण में एकेन्द्रिय आदि जीवों के उदयप्रायोग्य नामकर्म की बंध प्रकृतियों का निर्देश नहीं किया है तथापि टीका से ऐसा प्रतीत होता है कि वहाँ देवगति और नरकगति की उदययोग्य प्रकृतियों में ही वैक्रिय शरीर और वैक्रिय अंगोपांग का ग्रहण किया गया है। जिससे ऐसा ज्ञात होता है कि तिर्यंच और मनुष्यों के वैक्रिय शरीर और वैक्रिय अंगोपांग का उदय नहीं होना चाहिए, तथापि कर्म प्रकृति के उदीरणा प्रकरण की गाथा ८ से इस बात का समर्थन होता है कि यथासम्भव तिर्यंच और मनुष्यों के भी इन दो प्रकृतियों का उदय व उदीरणा होती है ।
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