Book Title: Karmagrantha Part 6 Sapttika
Author(s): Devendrasuri, Shreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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षष्ठ कर्मग्रन्थ
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. २६ प्रकृतिक उदयस्थान में तीर्थंकर प्रकृति को मिलाने पर २७ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह स्थान तीर्थंकर केवली के औदारिक मिश्र काययोग के समय होता है। इस उदयस्थान में समचतुरस्र संस्थान का ही उदय होने से एक ही भङ्ग होता है।
पूर्वोक्त २६ प्रकृतिक उदयस्थान में पराघात, उच्छ वास, प्रशस्त विहायोगति और अप्रशस्त विहायोगति में से कोई एक तथा सुस्वर
और दुःस्वर में से कोई एक, इन चार प्रकृतियों के मिलाने से ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है । यह स्थान अतीर्थंकर सयोगि केवली के औदारिक काययोग के समय होता है । यहाँ छह संस्थान, प्रशस्त
और अप्रशस्त विहायोगति तथा सुस्वर और दुःस्वर की अपेक्षा ६४२४२= २४ भङ्ग होते हैं। किन्तु वे सामान्य मनुष्यों के उदयस्थानों में प्राप्त होते हैं, अतः इनकी पृथक से गणना नहीं की गई है।
३० प्रकृतिक उदयस्थान में तीर्थंकर प्रकृतिक को मिला देने पर ३१ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह तीर्थंकर सयोगिकेवली के औदारिक काययोग के समय होता है तथा तीर्थक र केवली जब वाक्योग का निरोध करते हैं तब उनके स्वर का उदय नहीं रहता है, जिससे पूर्वोक्त ३१ प्रकृतिक उदयस्थान में से एक प्रकृति को निकाल देने पर तीर्थकर केवली के ३० प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जब उच्छ वास का निरोध करते हैं तब उच्छ वास का उदय नहीं रहता, अत: उच्छवास को घटा देने पर २६ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। किन्तु अतीर्थंकर केवली के तीर्थंकर प्रकृतिक का उदय नहीं होता है अतः पूर्वोक्त ३० और २६ प्रकृतिक उदयस्थानों से तीर्थकर प्रकृति को कम कर देने पर अतीर्थकर केवली के वचनयोग का निरोध होने होने पर २६ प्रकृतिक और उच्छ वास का निरोध होने पर २८ प्रकृतिक उदयस्थान होता है । अतीर्थंकर केवली के इन दोनों उदयस्थानों में छह संस्थान और प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, इन दोनों की अपेक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only
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